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________________ ते जुवे वेशमां ॥ मा० ॥ ते० ॥ जो जरतार नाव्यो, करे बीजो लेशमां मा० ॥ क० ॥ १७ ॥ स्मृत्युक्तं - सनिर्वाचा प्रदत्ता या, यदि पूर्वतरो मृतः ॥ सा चेदकतयोनिः स्यात्, पुनः संस्कारमर्हति ॥ १ ॥ पुत्रवती जे नार, मु धणी तेइनो || मा० ॥ मु० ॥ बेठी रहे आठ वरस, लगे मान एहनो ॥ मा० ॥ ल० ॥ फरी बीजो जरतार, करे नारी वली ॥ मा० ॥ क० ॥ तो शास्त्रे को दोष, नारीने जाये टली || मा० ॥ ना० ॥ १८ ॥ श्लोकः - अष्टौ वर्षाणि सपुत्रा, ब्राह्मणी पतितंपति ॥ प्रसूता च चत्वारि, पुरतोन्यः समाचरेत् ॥ २ ॥ परी तुम माय, विचार तेह्नो नहीं || मा० ॥ वि० ॥ ते सांजलीने हुं श्राव्यो, कारण नेर, घंटानाद में कीयो ॥ मा० ॥ लीयो ॥ मा० ॥ ति० ॥ १९ ॥ चोथा खंमनी रंग विजयना शिष्य, नेमविजये कही ॥ ब्रह्मशाला मही ॥ मा० ॥ ० ॥ कौतिक धं० ॥ चाट्यो तापस साथ, तिहां वेश में ढाल, चोथी ए सही ॥ मा० ॥ चो० ॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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