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________________ K मा ॥ जल मांहीं उपन्यो पंपोट, तेहथी इंडं जायुं खोटरे ॥ मा ॥ १० ॥ की, त्रण खंग, तेथी उपन्यो सहु ब्रह्मांमरे ॥ मा० ॥जलमां मूक्युं ब्रह्माए इंडं, तेथी। जायुं बे वली रिंडुरे॥मा ॥ ११॥ सृष्टि नहोती किहां रह्या ब्रह्म, जल पोट इंडं केम जमारे ॥ मा० ॥ मिथ्या मतना कहुं विचार, सृष्टि उपनी घणे प्रकाररे ॥ मा०॥ ॥ १५॥ आदि हो तुं एक अनादि, तेथी उपन्यो श्रादिता सादिरे ॥मा॥ आदितनो उपन्यो कार जैकारनो वेद अपाररे ॥मा॥१३॥ वेदनो हव्य हव्यनो धूम, धूमनो। मेघ जल रूमरे ॥ मा० ॥ जल व्याप्युं उंचं अखंड, जर व्याप्युं एकवीश ब्रह्मांडरे ॥ मा ॥ १४ ॥ तेणे काल आदि विष्णु जलसार, जल साक्ष पोढ्या अपाररे ॥ मा० ॥ पोट्याधी गया बहु काल, वर्ष सहस्त्र वही गयां रसालरे ॥ सा ॥१५॥ तदा । काल नहीं श्रादि अनादि, पृथ्वी अप तेउ नहीं वली सादिरे॥मा० ॥ वायु आकाश तरुवर नहीं एह, चंड सूरज ग्रह नहीं वली तेहरे ॥मा ॥१६॥ अग्नि आदि करी नहीं एक, तदा श्रादि विष्णुए निपायो बेकरे ॥मा॥ प्रथम पेहे निपायुं तेज, तेज थकी ज्योति उपन्यो हेजरे ॥ मा० ॥ १७ ॥ ज्योति थकी उपन्यो वली फेन, फेनथी । उपन्यो श्रदबुद सेनरे ॥ मा० ॥ श्रदबुदथी उपन्यो बली अंम, अंड थकी उपन्यो
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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