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________________ धर्मपरी० ॥ ७६ ॥ मूत्र शूचि कारनो, दुर्गंध गंध उतपात ॥ ३ ॥ इहां नीकलवुं न वि घटे, वदने थाये बहु वर्ष ॥ नाजिकमल जे विष्णुनी, तेमां का देह तो हर्ष ॥ ४ ॥ पहेलो काज विचाए, तेहने नावे को लाज ॥ विष्णु नाजिने बिद्रे करी, ब्रह्मा नीकल्या श्राज ॥ ५ ॥ इंटी वलग्यो केश अंगनो, धाता न लहे लवलेश ॥ ब्रह्मा तिहां वलगी रह्या, माटु यया वलगे केश ॥ ६ ॥ नाजिकमल रचना करी, पांखमी अष्ट प्रकार ॥ उपर यासन पूरीयुं नाम कमलासन सार ॥ ७ ॥ दिवस तेज यादे करी, पदम जात ते नाम ॥ नाजिकमले दरि उपन्या, कथा जाणो ब्रह्मानी ताम ॥ ८ ॥ माया मुनि इसी बोलीयो, विप्र विचारी जोय ॥ वेद पुराणे कथा कही, साची जूती होय ॥ ए॥ विप्र वचन तव बोलीया, पुराण प्रसिद्धो एम ॥ सर्व शास्त्र मांहीं कयुं, खोटं कहीए केम ॥ १० ॥ ढाल बी. घी एक धोने राणी सुंबरो, सुंबरो दरियोरे न जाय - ए देश . मनोवेग पवनवेग जणी, सामुं जोइ मित्त ॥ मित्र वचन मुज सांजलो, एक मनमां धरी चित्त ॥ साजन सहुको सांजलो ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ जेम कमंगल सरसव जेटले, मध्ये जग मायंत ॥ तो कमंगल मोटा मांहीं, गज छामे केम न पेसंत ॥ सा० ॥२॥ जेम चौद ॥ ७६
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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