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________________ जोउं अजिनेरुं ॥मा०॥१६॥ उंची दृष्टि हो जायुं जाम ॥ मा० ॥ पींडी कमंगल हो दीतुं ताम ॥ मा० ॥ जतन करीने हो बांध्यां वे जेह ॥ मा०॥ हस्ते करी ने हो उतार्यां तेह ॥ मा० ॥ १७ ॥ मन | मांहीं से विचार्य एहवुं ॥ मा० ॥ वस्त्र विदुषा हो करशुं के हेतुं ॥ मा०॥ श्रावक सुतने हो जाचुं अहीं केम ॥०॥ पींडी कमंगल धरीयां तेह ॥ मा० ॥ १८ ॥ गुरुजी पाखे हो दीक्षा में लीध ॥ मा० ॥ देश विदेशे हो विहारज कीध ॥ मा० ॥ पाटलीपुरमां हो श्राव्यो हुं याज ॥ मा०॥ कथा कही बे दो में मूकी लाज ॥ मा०॥१॥ संबंध कथानो हो कह्यो बे एह ॥ मा०॥ द्विजवर वातो हो विचारो तेह || मा० ॥ साचां वचन हो कह्यां वे छामो ॥ मा० ॥ खोटां वचन हो म करशो तमो ॥ मा० ॥२०॥ खंग त्रीजानी हो ढाल कही त्रीजी ॥ मा० ॥ श्रोता सहुको हो करे जो जीजी || मा० ॥ रंग विजयनो हो शिष्य एम बोले ॥ मा० ॥ निम विजयने दो नहीं कोई तोले ॥ मा० ॥ २१ ॥ उदा. विप्र वचन तव बोलीया, सांजलरे अजाण ॥ जूठो किमही न बोलीए, कलि केम उगे जाण ॥ १ ॥ खोटां वचन तमे उचर्यां, दीसो बोरे लबान ॥ डिंग मोल्यां बे घड्यां, तुमे धूरत महा थाम ॥ २ ॥ कमंगल मांहीं मयगल तुमो, पेठा वो एह खंग ३ ॥ ७२ ॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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