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________________ धर्मपरि० प्रहाररे ॥ हुंहुंकार करता याव्या, अनुक्रमे सहु तेषी वाररे ॥ प्री० ॥ २१ ॥ क्रोध मान माया लोज जरीया, राग द्वेषनां गेहरे ॥ पहेला खंडनी ढाल चोथीमां, नेमविजय कहे एहरे ॥ प्री० ॥ २२ ॥ ॥ ५ ॥ उदा. तखत उपर बेठा चढी, दीठो सहु परिवार ॥ थालोचे मनमां तिहां, ए कुण कहीए कुमार ॥ १ ॥ श्रनूषण अधिके करी, पहेर्या सोल शणगार ॥ इंद्र चंद्र नागेंद्र ए, अथवा देवकुमार ॥ २ ॥ श्रन्यो अन्य सांसे पड्या, जक्ति करे बहु जेव ॥ जगन्य जागना होमयी, श्राव्या सही ए देव ॥ ३ ॥ पुण्य आपणां पाधरां, आव्या | परमेश ॥ तुष्टमान याशे सही, धर्या अनोपम वेश ॥ ४ ॥ कोइ कहे ए बे सही, नारायणनुं रूप ॥ श्रापण सहुने तारशे, पड्या बीए जवकूप ॥ ५ ॥ कोई कहे महादेवजी, श्राव्या आपण सेव ॥ हरहर मुख जपे सदु, सदुधी अधिको देव ॥ ६ ॥ कोइ कहे ब्रह्माजी तणो, अनुपम रूप आकार ॥ ब्रह्मलोकधी श्रावीया, तारे सहु नरनार ॥ ७ ॥ कोई कहे ए ड बे, को कहे सूरज चंद्र ॥ को वासी पातालनो, १ संशयमां. खंग १ ॥ ७ ॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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