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________________ म ३ जो. डुदा. सकल जिनवर पय नमी, सद्गुरु चरण नमेव ॥ त्रीजो खंड कहेशुं दवे, नेमविजय कड़े देव ॥ १ ॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे चंग ॥ मिथ्यात पुराण वली दाखवुं, फेरवी रूप उत्तंग ॥ २ ॥ ढाल पी. मन मधुकर मोही रह्यो - विद्या प्रजावे रूप पालट्यां, बेहु दुवा साधु महंतरे ॥ पश्चिम पोले प्रवेश करी, द्विजशालाए खावी संतरे ॥ मनोवेग बुद्धि विचक्षणो ॥ ए यांकणी ॥१॥ दंड धरी नेरी आलवी, कीधो घंटारव तामरे || सिंहासन बेठा मुनि रुखमा, जोवा मल्युं सज गामरे ॥ म० ॥ २ ॥ शब्द सुणी द्विज श्रावीया, बोले बिरुद अनेकरे ॥ देखी जति प्रते एम कहे, जो मुनि प्रत्युत्तर एकरे ॥ म०॥३॥ व दर्शन बन्नुं मत तथा करो यमथी वाद विशालरे ॥ कोण दर्शन कोण गुरु शिष्य, जवाब देजो दयापाल रे ॥ मा० ॥४॥ विप्र - ए देशी.
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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