SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपर व्युं लिंगदे ॥ सा ॥ सु० ॥ ॥ पूजी प्रतिष्ठी वंदीयो, तव रोग सोग गया रहे ॥ सा ॥ विद्याए विघन निवारीयां, सुख संतान घर पूरहे॥ सा ॥ सु० ॥५॥ हस्त पाय मस्तक नहीं, जलाधारी मांहे लिंगहे ॥ सा ॥ निर्लज लोक लाजे नहीं, बीली धंतुरो चढे अंगहे ॥ सा ॥ सु०॥ १० ॥ मूरख मूढ मिथ्यातीश्रा, हस्त शिर || कंठे बांधे तेहहे ॥ सा ॥ हर हर मुख हश्डे धरे, पूजे पखाले वली जेहहे ॥ सा ॥ ||सु ॥ ११॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे सारहे ॥ सा ॥ सत्य वचन जे नाजिन तणां, धरजो मन निरधारहे ॥सा॥सुणार॥ सत्य धरम जिनवर तणो, जिहां जोए तिहां सारहे ॥ सा ॥ जे नर निश्चे चित्त धरे, ते पामे नव पारहे ॥ सा० ॥ सु०॥ १३ ॥ मिथ्या मत जे मोहीया, घेला ते मूढ गमारहे ॥ सा ॥ असत्य वचन Kावली आचरे, जव जव जमशे संसारहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १४ ॥ पवनवेग तव बोली, सांजलो नाश् चंगहे ॥ सा ॥ सत्य धरम जिनवर तणो, ते उपर मुज रंगहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १५ ॥ कुदेव कुशास्त्र कुगुरु सहु, में परीहयों मिथ्या धर्महे! ॥ सा ॥ वचन तुमारां सांजली, नांग्यो सघलो मन नर्महे ॥ सा ॥ सु० ॥ १६ ॥ सुदेव सुगुरुने आदर्या, आदर्यो जैननो धर्महे ॥ सा ॥ मित्र मनोरथ मुज फट्या,
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy