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________________ उदा. मोह पाम्यो नृत्य देखता, नाटकी नख जोश ताम ॥ विद्याए विपरीत रूप कर्यु, नीचुं रुपेदीकुंजाम ॥१॥प्रतिमास्थाने पुरुष एक, वदन चारदीसे तेह ॥ पांचमुं मुख उचं खर तर्पु, लुलुंकार जुंके जेह ॥२॥ कविण चित्त रुखे करी, कर नखे कपाल ॥ ब्रह्मा विद्या नासी गश्, हस्त चोंट्यं विकराल ॥३॥कपाविक नाम रुपर्नु, ते दिनथी कहे लोक ॥ एकदा रुष गौरी बेहु, विमान बेसी तजी शोक॥४॥वणारसी वन जायतां, वीर उना धरी ध्यान ॥ गौरी शंकरने कहे, तुम नाइ रह्यो मूकी मान ॥५॥ प्रिय कारणी सुत संजमी, तुमे श्रति लंपट नूर ॥ हास्य करीश्म रुजणे, ध्यान करूं एह |चूर ॥६॥ रुखे उपसर्ग मांमीयो, मेघवृष्टि करी घोर ॥ गाज वीज घणुं गरगडे, वाघ * सिंह सर्प घोर ॥ ७॥ वायु अने पाषाणनी, वृष्टि कीधी घणी वार॥ रात सघली उपभव कर्यो, जिन मन न चल्युं लगार ॥॥प्रजात हुवो शिव चिंतवे, में पापी कीधथकाज y ॥ मेरु सरिखो निश्चल मुनि, क्षमावंत जिनराज ॥ ए॥ निंदा गुरु श्रति घणी करी, महावीर धर्यु नाम ॥जक्ति जावे पाय चांपीया, खर मस्तक पड्युं ताम ॥१०॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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