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________________ परि० ॥६॥ अनोप अधिक उठांदेरे ||ी ||२|| घेवर मोतीचूर ने लाऊ, खाजां खुरमां ने पूरी रे ॥ साटां फीणी हेसमी मरकी, जलेवी मेसुब चूरीरे ॥ प्री० ॥ ३ ॥ सेव सुंहाली लापसी ताजी, खीर खांडांवां केलांरे ॥ अखोड डाख ने खजुर खारेक, सुगंधी शाको लारे ॥ प्री० ॥ ४ ॥ कुरदाली दधि दूध उपर, घृत जानी परनालरे ॥ सालेवां पापड तली बे वमी, जमी उठ्या तत्कालरे ॥ प्री० ॥ ५ ॥ पान सोपारी लवींग एलची, मुख तंबोल दीघां वारुरे ॥ कपुर वास्यां नीर मंगावी, शौच थया चालवा सारुरे ॥ प्री० ॥ ६ ॥ चंदन कपुर केशर घोली, अंग विलेपन की धरे ॥ कुसुममाला पहेरी कोटे, मुहूरत वेला लीधरे ॥ प्री० ॥ ७ ॥ साज लेइने सामग्री कीधी, विमानमां बेसी तामरे ॥ याव्या ततक्षण पामली परिसर, दीवां मनोहर वामरे || प्री० ॥ ८ ॥ उतरी देग विमान मांहेथी, पहेर्यां वस्त्र ते साररे ॥ माथे मुकुट काने कुंमल, कोटे मोतीनो दाररे ॥ प्री० ॥ ए ॥ बांदे बाजुबंध बेरखा बांध्या, मुद्रिका कटी कंदोरारे ॥ पाये मोजडी सोल शणगारे, वशीकरण पासे मोहोरारे ॥ प्री० ॥ १० ॥ एकने मस्तक खडनो जारो, | बीजाने मस्तक काठीरे ॥ हाथ कोहामो दातरमां लेश, बीजा हाथमां लाठीरे ॥ प्री० १ जात दाल. म १ ॥ ६॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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