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________________ सुर नर सघला देखतां ला पाम्या तेह ॥ दलुपणुं ब्रह्मा दुवो, लघिमा गुण बे तेह ॥ २ ॥ ब्रह्म पुराणे जाखीयो, मिथ्या मत विचार ॥ जिनशासन नहीं मानीए, खोटुं एह सार ॥ ३ ॥ जगगुरु जिनवर जाणजो, निकलंक स्वामि देव ॥ दोष एक दीसे नहीं, तेह तणी करो सेव ॥ ४ ॥ ईश्वर लघुपएं पामीयो, सांजलो तेह विचार ॥ कुकविए एम जाखीयुं, लिंग पुराण मोजार ॥ ५ ॥ ढाल ढारमी. तो चढीयो घण माण गजे – ए देशी. माचल कुमरी वरी ए, शंकर मन उल्लास ॥ हर कैलासे श्रावी करी ए, गौरीशुं जोग विलास तो ॥ १ ॥ उमीया कहे शंकर सुणो ए, नृत्य करो मनोहार तो ॥ देवदार वनमां जश्ने, नाटिक मांड्यो सार तो ॥ २ ॥ मस्तक शेखर शशिकला ए, गले गरल' बांहिं नाग तो ॥ नरमुंड माला शोजती ए, कटी मेखल कटी जाग तो ॥३॥ जस्म विलेपन अंग रच्युं ए, घुघरीनो घमकार तो ॥ नव रस नाटिक नाचतां ए, कांऊरनो ऊमकार तो ॥ ४ ॥ नृत्य करीने चालीयो ए, निक्षा तापस वास तो ॥ तापस तरुणी विह्वल हुइ ए, १ फेर.
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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