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________________ परीकी परनारी तणो दोष एक, वेद पुराणे जु विवेकरे ॥जो देव तणा नहीं लीजे दोष, तो खंग मीनमानो श्यो रोषरे ॥ सांग ॥ १४ ॥ वाडव वचन बोल्या तव सार, तुं वादी मोटो । गुणधाररे ॥ जयवाद पाम्या तुमे अपार, विप्र हार्या श्रमे वीश वाररे ॥ सांग ॥१५॥ मनोवेग वली बोल्यो ताम, पवनवेग सुणो अनिरामरे ॥ देव तणा गुण दीग तुममे, |काम विकार कह्या अममेरे ॥सांग॥१६॥ मदन महा सुनट जीत्यो जेह, देव करी मानो || तुमे तेहरे ॥ नवी चले रामा रूपने देखी, विषयने नाखे उवेखीरे ॥ सांग ॥१७॥ |सराग वचन जे बोले वाम, ते उपर न धरे मन कामरे ॥ इंजिनां सुख करे असार, ते देव कहीए निरधाररे ॥सां॥१॥ शील सहस्र पाले श्रढार, ते तारण तरण संसा-IN लारे ॥ एहवा जाणो जिनवर देव, नावे जगते करो सेवरे ॥ सांग ॥ १७ ॥ त्रिजुवन | नायक सेवे जेह, स्वर्ग मुक्ति पामे तेहरे ॥ जीती करी वामवने वेगे, वनमां श्राव्या N||धरी तेगेरे ॥ सांग ॥ २० ॥ खंड बीजानी सोलमी ढाल, सांजलजो बाल गोपालरे ॥ रंगविजयनो शिष्य दयाल, नेम कदे थर जमालरे ॥ सांग ॥१॥ उदा. पवनवेग तव बोलीयो, सांजलो जाइ विचार॥देव दोष जे दाखव्या, सत्य वचन ते|
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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