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________________ धर्मपरी० ॥ ५४ ॥ ताम ॥ सा० ॥ सां० ॥ १७ ॥ विश्वानल तुं सांजल खाज, जनम सफल करे महाराज ॥ सा० ॥ रूपर्वत बायानो संजोग, तेहशुं जम करे नित जोग ॥ सा० ॥ सां० ॥ १८ ॥ उदर मांही राखे ते बाल, काज पड्ये काढे ततकाल ॥ सा०॥ विश्वानल कहे सांजल जाय, त्रिभुवन मांहे तुं मोटो वाय ॥ सा० ॥ सां०॥ १९ ॥ खंग बीजानी चौदमी ढाल, नेमविजय कदे उजमाल ॥ सा० ॥ श्रगल सांजलजो सहु कोय, वायुकुमार करे ते होय ॥ सा० ॥ सां० ॥ २० ॥ उदा. जोग मले तेहशुं करो, जीव जातो मुज राख ॥ सांजलजो वायु कहे, वचन अमारां जाख ॥ १ ॥ जम जूठो कामी घणो, घडी एक न मेले बाल ॥ केम मेलाप तेहशुं होये, उदरमां राखे ततकाल ॥ २ ॥ याज एक बात विचारी में, पुण्ये सरशे काज ॥ गंगा स्नान करवा जणी, जम राजा करी साज ॥ ३ ॥ पोहोर एक जाय ध्यानमां, बाया मेली एक ठाम ॥ संध्या जाप करे तिहां, आपणो होशे काम ॥ ४ ॥ एक पोहोर अवकाशमां, जम नावे बाया पास || तेणे समे तिहां जाइने, बाया हरीए तास ॥ ५ ॥ खंग २ ॥ २४
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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