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________________ - खंग परीय ॥ तु०॥ जोग विलास हुको रंग रोल, इर्ष प्रीत बेड थाय ॥ तु०॥७॥ गर्न Vinों कुंतीए तेणे अवसर, जोग करी वलीयो जाण ॥ तु० ॥ कुमरी कहे किहां जा| जो खामि, वृतांत कहो बांडी काण ॥ तु॥ ए॥ हिजवर कहे सुणो सुंदरी कन्या, सूर्यदेव श्रम नाम ॥ तु ॥ रूप देखी चित्त श्रम तणुं चलीयु, विप्र हो कीधो काम |॥तु॥ १० ॥ जुवन प्रकाश करुं दिन गगने, जावा द्यो मुज श्राज ॥ तु०॥ कुंती कहे नहुं बाल कुमारी, उधान रह्यो दिनराज ॥ तुम्॥११॥ नासुर नणे नामनी तुम कूखे, पुत्र होशे दातार ॥ तु० ॥ रूप कला बल बुद्धि विचक्षण, त्रीजा दिवस मोकार ॥ तु॥ १५ ॥ मंत्र अपूर्व वली आपुं तुमने, नर आकर्षण होय ॥ तु०॥ समरतां श्रा|वे सहु पासे, काज करशुं श्रापण दोय ॥तु॥१३॥ मंत्र श्रापी करी कुंती संतोषी, जानु गयो निज गम ॥ तु ॥ कन्याए काने जण्यो सुत सुंदर, करण हुवो तेह नाम ॥ तु०॥ १४ ॥ मंझपकौशीक कहे सुण तापसी, कुंतीने जोगवे जेद ॥तु०॥ सूरज देवता मोटो लंपट, गयाने केम बोडे तेह ॥ तु०॥ १५ ॥ ढाल बारमी खंड बीजानी, कही। श्रोताजन सारु॥तु॥रंगविजयनो शिष्य एम पत्नणे, नेमविजय कहे वारु ॥तु०॥१६॥ ५० ॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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