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________________ परि० ॥५॥ गणपति, यक्ष शेषनाग ने नागणी ॥ वीरा जवानी खेतरपाल, चंडी चामुंडी नरसिंह धणी ॥ वी० ॥ १५ ॥ वीरा गम ाम देवल पोशाल गीत नृत्य वाजिंत्र घणां ॥ वीरा वादी विविध प्रकार, वेद निर्घोष बोले जणां ॥ वी० ॥ १६ ॥ वीरा नक्ति करे जोला लोक, घरघर पुराणनी वारता ॥ वीरा जंगम साज सैव, नाट जोजक दिल गरता ॥ वी० ॥ १७ ॥ वीरा नगर विलोकतां वार, लागी कतुहल जोवतां ॥ वीरा बोल्यो पवनवेग मन, केम चाल्युं मने मेलतां ॥ वी० ॥ १८ ॥ वीरा मित्रनां लक्षण एह, सुख दुःख नेलां ते जोगवे ॥ वीरा प्रीत बंधाणी होय जेह, रुडे प्रकारे जोगवे ॥ वी० ॥१८॥ वीरा मित्राइ साची तेह, तेडीने साथै संचरे ॥ वीरा नेमविजय कहे एम, ढाल त्रीजी दिल एम ठरे ॥ वी० ॥ २० ॥ उदा. पयने पाणीनी परे, प्रीत रीत कही एम ॥ स्वारथ कीधो तुम तणो, कूडो दीसे | प्रेम ॥ १ ॥ दुष्ट हृदयना ठो धणी, बोलो मीठा बोल ॥ निश्वे निरवाहो नहीं, कोमीनो | तुम तोल ॥ २ ॥ विश्वासघाती होय जे, कृतघ्न कहीए तेह || गुण अवगुण जाणे नहीं, डुरजनना गुण एह ॥ ३ ॥ जाइ तुमे खोटा सही, (मुज) मूकी जोया देश ॥ खंग १ ॥ ५ ॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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