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________________ जलपूजाया जलसार कथा IFFEREFERESHEEFLEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE सरिसं पेच्छए किंपि ॥ ९५ ॥ नयणाणिमिसत्तप्पमुहलिंगविनायअमरसब्भावं । रइयकरकमलकोसो तं नमिय पयंपइ कुमारो ॥ ९६ ॥ को पहु तुमं किमेवं भीसणरूवो ठिओ कहसु मज्झ । इय तेणुत्तो अमरो कुमरं पइ भणइ सुणसुत्ति ॥ ९७ ॥ अस्थि असमत्थसुहडं समत्थसुहडोहपत्तविजयंपि । जयसारं नाम पुरं विजयावहरायलंकरियं ॥ ९८॥ तत्थथि वित्तसियकरवियरणसंजणियजणमणपमोओ । सम्मयसहितो चंदोव चंदतेउत्ति अत्थवई ॥ ९९ ॥ चंदप्पहाभिहाणा मणोहरा तस्स पिययमा अस्थि । चंदप्पहमइरा इव सरूवकयजणमणुम्माया ॥ ५०० ॥ बहुधणवईवि दवजणाय सो कुणइ भूरिववहारे । कयकिच्चेहिं वि महिओ जलही रयणत्थि अमरेहिं ॥ ५०१॥ काउं कयाणयाइं कयाई पउणाई पवहणे चडिओ। चलियो य मलयसिंघलकडाहकेसाइदीवेसु ॥ २॥ गच्छइ पोओ दूरा नीरभरं मच्छए तरंगे य। फाडतो तासंतो भंजंतो भूरिवेगेण ॥ ३॥ अणुकूलवायविहिमणवियंभणप्पेरियंव जलजाणं । थेवेहिवि दिवसेहिं बंछियदीवेसु संपत्तं ॥ ४ ॥ तत्थ मणवंछियत्तहियजायबहुलाहपत्तपरिओसो । गहिउं सदेसजोग्गे कयाणए तयणु बाहुडिओ ॥५॥ पवणप्पसराऊरिजमाणसियवडपयंडवेएण । थोवदिणेहिंवि पत्तो पोओ जलरासिमज्झम्मि ॥६॥ जाएत्यंतरे अकालियघणपडलेहिं समेग्गनहमग्गो। जीवोब अकजब्भवपावेहिं कलुसिओ दूरं ॥ ७॥ नहदप्पणे समुद्दो संकतो अह घणो जलहिसलिले । जणयंति विब्भमं दोवि सामला पेच्छिरनराण ॥ ८॥ झंपाए समुल्लसिरो सिंधुजले निवडिऊण तडिपुंजो। वडवानलोब रेहइ नहमंडलजंतजालोहो ॥ ९॥ अञ्चंतथूलामलजलधारासारसलिलसंभारं । मुंचइ मेहो मोयाविउंव जलहिं समजायं ॥ ५१०॥ सामघणाली गयणे सामुक्कलियावली समुद्दम्मि । गजंतीओ पसरंति दोवि गुरुगयघडाओध ॥ ११ ॥ नीतो होइ घणो जलभरेण उल्लसइ तेण य समुद्दो । दोन्निवि मिलिणनिमित्ता परोप्परं संचरंतिव ॥ १२ ॥ एवं अकालभवमेहमंडलाडंबरं पलोएउं । सबोवि पवहणजणो जातो कायबमूढमणो ॥ १३ ॥ रोरसमी
SR No.034167
Book TitleAnantnath Charitra Dudhrutam Pujashtakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherRaichand Gulabchand Shah
Publication Year1940
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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