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________________ ६६ ] [ द्रव्यानुभव - रत्नाकर । गुण । अब इन छओं द्रव्योंके गुण कहते हैं सो प्रथम जीव द्रव्यके चार गुण - १ अनन्त ज्ञान, २ अनन्त दर्शन, ३ अनन्त चारित्र, ४ अनन्त वीर्य । आकाश द्रव्यके चार गुण - १ अरूपी, २ अचेतन, ३ अक्रिय, ४ अवगाहना (जगह) दानगुण | धर्मस्तिकायके चार गुण – १ अरूपी, २ अचेतन, ३ अक्रिय, ४ गति सहाय । अधर्मस्तिकायके चार गुण१ अरूपी, २ अचेतन, ३ अक्रिय, ४ स्थिति सहाय । काल द्रव्यके चार गुण - १ अरूपी, २ अचेतन, ३ अक्रिय, ४ नया, पुराना वर्तना लक्षण | पुद्गल द्रव्यके चार गुण - १ रूपी, २ अचेतन, ३ सक्रिय, ४ मिलन, विखरन, पूरन, गलन । पर्याय । का अब इन छओं द्रव्योंके पर्याय कहते हैं । प्रथम जीव द्रव्यचार पर्याय - १ अव्यावाध, २ अनअवगाह, ३ अमूर्तिक, ४ अगुरु लघु । आकाश द्रव्यके ४ पर्याय - १ खन्द, २ देश, ३ प्रदेश, ४ अगुरु लघु | धर्मस्तिकायके ४ पर्याय – १ खन्द, २ देश, ३ प्रदेश, अधर्मस्तिकायके ४ पर्याय - १ खन्द, २ देश, ४ अगुरु लघु । ३ प्रदेश, ४ अगुरु लघु । काल द्रव्यके ४ पर्याय - १ अतीत (भूत), २ अनागत, ( भविष्यत ), ३ वर्तमान, ४ अगुरु लघु । पुद्गल द्रव्यके ४ पर्याय -१ वर्ण, २ गन्ध, ३ रस, ४ स्पर्श अगुरु लघु सहित । इस रीति से छओं द्रव्योंके गुण पर्याय कहकर दिखाये, प्रथम लक्षणके स्वरूपको जताये, गुण पर्यायवत्वं द्रव्यत्वं सबके मन भाये, पाठकगण इस लक्षणका स्वरूप देख मनमें हुलसाये, वादियों के चाद इस लक्षणमें नसाये, चिदानन्द स्याद्वादके गुण गाये, करके अभ्यास मिथ्या मोहको भजाये, पढे जो ग्रन्थ सो आनन्दको पाये, आगमका स्वरूप कहा आतम गुणको लखाये, छोड़े सब भ्रमजाल जैन मत ही में धाये, प्रथमतो कहा द्वितीय लक्षणके कहनेको चित्त अब चाये, इस रीतिसे प्रथम लक्षण कहा । Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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