SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर।] को छः दिशाका स्पर्श होनेसे कुछ अविभागीपना न मिटेगा। इसलिये परमाणुको अविभागी अर्थात् निरअंश कहनेका यही प्रयोजन है कि उस परमाणुमें से दूसरा विभाग न होय, इस दूसरे विभाग न होनेके अभिप्रायसे उसको अविभागो कहा, कुछ छः दिशाका स्पर्श न होनेके वास्ते निरअन्श न कहा, इसलिये छः दिशाका स्पर्श होनेसे भी परमाणु निरअन्श अर्थात् अविभागीं है, उस अविभागीमेंसे दूसरा विभाग कदापि न होगा। इस अभिप्रायको जान, छोड़ अभिमान, तजो क्षणिक विज्ञान, सतगुरूके उपदेशको मान, जिससे होय तेरा कल्याण । इसरीति से जो बौध मतवालेने प्रश्न किया था सो उसका प्रश्न न बना और स्याद्वाद मतका रहस्य मेरी बुद्धि अनुसार मैंने कहा। अब प्रसंग गतसे क्षेत्र अव गाहना की स्थिति भी कहते हैं कि जिस आकाश प्रदेशके विषयजो पुद्गल दव्य रहता है सो एक प्रदेश अवगाह व संख्य प्रदेश अवगाह अथवा असंख्य प्रदेश अवगाह जघन्यसे एक समय शुद्धि रहे, तिसके बाद एक प्रदेश अवगाह वालातो द्वि प्रदेश अवगाहमें मिले ओर द्वै प्रदेश अवगाह वाला तीन प्रदेश अक्गाहमें मिले तो उत्कृष्टसे असंख्य काल पीछे मिले, परन्तु अनन्त काल शुद्धि एक अवगाहपने रहे नहीं; इसरीतिसे उनका स्वभाव है अब अवगाहना रहनेका अन्तर कहते हैं कि जो परमाणु जिस आकाश प्रदेश को अब गाहक किया होय उस ठिकाने जघन्य करके एक समय और उत्कृष्ठ करके संख्यात काल शुद्धि रहे तिस पीछे दूसरे प्रदेशकी अवगाहना करे हैं इसरोतिसे फिरता फिरता फिर उस आकाश प्रदेशके विषय असंख्याते कालमें आता है क्योंकि आकाशका असंख्याता प्रदेश है। (प्रश्न) मूल प्रदेशका त्याग करके दूसरा असंख्याता प्रदेशआकाश का है उन प्रदेशोंको फरसकर पीछा आयकर उस मूल प्रदेशको फर्सना करेतो अनन्ता कालका अन्तर संभव है तो असंख्याता कालका अन्तर कहते हो इसका कारण क्या है। . ( उत्तर ) पुद्गलका ऐसा स्वभाव होता है कि असंख्यात काल Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy