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________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर ।] . (प्रश्न ) एक आकाश प्रदेशमें अनन्त प्रदेशी खन्दका समवेस अर्थात् प्रवेश क्योंकर होगा। (उत्तर) भो देवानुप्रियः आकाशके विषय अवगाहक गुण हैं तिस कारण करके जहां एक पुद्गल है वहां अनन्त पुद्गल समावेस अर्थात् प्रवेश हो सक्ता है, क्योंकि देखो जैसे एक दीपकके प्रकाशमें अनेक दीपकका प्रकाश समावेश अर्थात् प्रवेश हो सक्ता है। तथा जैसे एक पारद कर्षके विषय सुवर्ण शताकर्ष समावेस अर्थात् समाय जाता है । अथवा जैसे पानीका वर्तन भरा है उसमें बालू गेरनेसे उस पानोमें उस बालूका समावेस अर्थात् प्रवेश हो जाता है, और पानी उस वर्तनसे वाहर नहीं निकलता। इस रीतिसे पुद्गलका ऐसा हो धर्म हैं, तैसे ही एक आकाशके प्रदेशमें अनन्त परमाणु, अनन्तद्विणुक यावत अनन्त अनन्ताणुक खन्द समावेस होता है, क्योंकि अपना २ स्वभाव करके रहते हैं। (प्रश्न) समग्र लोकके विषय एक खन्दको अवगाहना क्योंकर हो सक्ती है। .. (उत्तर ) भो देवानुप्रिय इस पुद्गल दुव्य खन्दका विचित्र स्वभाव है, क्योंकि देखो कोई खन्द तो लोकका संख्यातवां भाग अवगाह करके रहता है और कोई लोकका असंख्यातवां भाग अवगाह ( रोक) करके रहता है, और कोई एक खन्द समग्र लोकको अवगाहता है। सो वो खन्द असंख्य प्रदेशो तथा अनन्त प्रदेशी जानना, क्योंकि संख्यात प्रदेशी कोई असंख्यात प्रदेशको रोक सके नहीं, ऐसा “श्रीप्रज्ञापना सूत्र” में कहा है, कि कोई एक अनन्त प्रदेशो खन्द एक समयमें सर्व लोकको अवगाह करके रहता है, सो केवलो समुद्घातकी तरह जान लेना, सो समुद्घात इस प्रमाणसे करे कि कोई एक अचित् महाखन्द विरसा परिणाम करके प्रथम समय असंख्यात् योजन विस्तारसे दंड करे, दूसरे समय कपाट करे, तोसरे समय थानु करे, चौथे समय प्रतर पूर्ण करे, सो चौथे समय समस्त लोकमें व्याप कर रहे, पोछे पांचवें समयमें प्रतर संहारे अर्थात् समेटे, Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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