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________________ द्रव्यानुभव - रत्नाकर । ] [ ५५ मिलकर खन्द भावको पाया होय तो पीछा पूरबके परमाणु भावको पावे अर्थात् एकाएको होय तो जघन्यसे एक समय और उत्कृष्टसे असंख्याता काल जान लेना । ( प्रश्न ) अनन्त प्रदेशीखन्दके विषय जो परमाणु संयुक्त है वो असंख्यात कालतक खन्दके विषय उत्कृष्टपते रहते हैं, तो जब खन्द भंग होय तत्र तिसमेंसे लघु खन्द उत्पन्न होता है, तिस लघु 'खन्दमें परमाणु असंख्यात काल तक रहे इस रीति से एक खन्दका अनन्त खन्द हो सका है तो उस अनन्त खन्द अर्थात् प्रत्येक २ खन्दमें असंख्यात २ काल तक परमाणु की स्थिति होनेसे अनुक्रम करके अनन्त कालका संभव होता है तो फिर पीछे एकाएकीपने को पाता है, इस रोतिसे अनन्ता कालका अन्तर संभव होता है तो फिर आप असंख्यातकालका अन्तर क्योंकर कहते हो । ( उत्तर ) भो देवानुप्रिय अभी तेरेको इस स्याद्वाद सिद्धान्तके रहस्यको खबर न पड़ो इसलिये तेरेको ऐसी शुष्क तर्क उठी सोहे भोले भाई जो इतना काल तक पुद्गलका संयोग रहता होय तो तेरी तर्कका संभव होय, परन्तु पुद्गलका संयोग तो असंख्यात काल शुद्धि ही रहे. तद् पश्चात् वियोग अवश्यमेव होय, ऐसा श्रोबोतराग सर्वज्ञ देवने केवल ज्ञानमें देखा सो ही सिद्धान्तोंमें प्रतिपादन किया है, सो भगवती, ज्ञाता सूत्र आदिकमें इन चीजोंका विस्तार है, मेरे 'पास ये सूत्र न होनेसे पाठ न लिखा । ( प्रश्न ) परमाणु खन्द के साथ मिला है सो खन्द बिनास पामें तो असंख्याता काल उपरान्त पामें हैं, इसलिये यह सूत्र चरितार्थ हुआ, परन्तु विविक्षित परमाणुको आश्रित भूत खन्दका वियोग होय तो परमाणुको क्या, क्योकि परमाणु तो खन्दके विषय अथवा अन्य परमाणु के साथ संयोग हुआ है, तिसका पीछा वियोग असंख्याते कालमें होय उपरान्त रहे नहीं परन्तु एकाएकी परमाणुकेवास्ते क्योंकर वियोग करते हो । (उत्तर) भो देवानुप्रिय ! हमारा कहना सूत्रके प्रमाणसे है Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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