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________________ वष्यानुभव - रचाकर । ] [ ५३ प्रदेशी असंख्यात् प्रदेशी अथवा अनन्त प्रदेशी जान लेना, तैसे ही देशपना भी द्विविभागी, त्रिविभागी, लक्षणरूप जान लेना । ( प्रश्न ) खन्दमें गिना हुआ परमाणु आयकर मिलता है तो देश व्यवहार संभवे नहीं, क्योंकि तिसका जितना देश करे उतना ही देश हो सक्ता है, जैसे कोई एक खन्दका आधा २ करे तो उसमें दो देश हों, इस रीतिले तीन विभाग करे तो तीन देश हों, यावत चार, पांच, छः, सात, संख्याता, असंख्याता अथवा अनन्त तक हो सकता है, इस रीतिसे जितना मोटा खन्द होगा उतने मोटे खन्दके अनुसार देशकी कल्पना कर सक्त हैं, परन्तु दो होय तो उसके विषय देश विभाग क्योंकर बनेगा, दो परमाणु मात्र ही मिले है, तो उस दो प्रदेशकी कल्पना होनेसे तो खन्द परिणामके विषय देश अथवा प्रदेश यह दोका व्यवहार सिद्ध होना मुशकिल है, क्योंकि उस दो विभागमें किसका नाम तो देश समझे और किसका नाम प्रदेश समझे । (उत्तर) भो देवानुप्रिय इस तेरे सन्देह दूर करनेके वास्ते सर्वज्ञदेव बीतरागका कहा हुआ अनेकान्त स्याद्वाद सिद्धान्तका रहस्य सुनों कि देश और प्रदेशमें कुछ सर्वथा भेद नहीं, है क्योंकि द्विविभाग और त्रिविभाग आदिक अवयव हैं उनको देश कहते हैं, सो वो देश दो प्रकारका है एक तो सअंश है, दूसरा निरअंश है, जो सअंश है उसको तो देश कहते हैं, और जो निरअंश हैं उसको प्रदेश कहते हैं, क्योंकि जो प्रष्ट देश है उसीका नाम प्रदेश है, इसलिये जिसमें कोई दूसरा अश न मिले उसका नाम प्रदेश है, इसलिये दो प्रदेशको भी खन्दके विषय दो देश कहते हैं, और प्रदेश भी दो ही कहते हैं, इसलिये जो दो प्रदेश हैं उन्हींको दो देश कहते हैं, दो प्रदेशी खन्दके विषय अश देश न हो किन्तु निरअ श देश होता है, और तीन प्रदेशी खन्दके विषय एकतो दो प्रदेशी खन्द तिसका नामतो देश होता है और दूसरा एक प्रदेशी होय क्योंकि परमाणुका आधा २ न होय, क्योंकि श्रीवीतराग सर्वज्ञदेवने परमाणुको अच्छेद तथा अभेद्य कहा है, इसलिये Scanned by CamScanner प्रदेश मात्र खन्द क्योंकि उसमें तो
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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