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________________ ५०] [द्रव्यानुभव-रत्नाकर। कदाचित कालको निमित्त कारण न मानों तो सर्व बस्तु व्यवस्था रहित हो जायगी। क्योंकि देखो बसन्त ऋतु आनेके बिना चम्पक. अशोक, आमादि बनस्पतिके विषय फल फूल आना चाहिये, और ऋतुका भी आगा पीछा होना चाहिये, तैसे ही वाल अवस्थामें जरा और जरा अवस्थामें बाल होना चाहिए, अथवा यौवन अवस्था प्राप्त विना ही बालक अवस्थामें ही गर्भ धारण करना चाहिये, इत्यादिक उपचारसे काल दुव्य निमित्त कारण न मानें तो लौकिक अपेक्षासे जो. व्यवस्था हैं, उसकी अव्यवस्था होजायगी, इसलिये अनेक तरहका विपरीत होजाय, सो तो देखनेमें आता नहीं, इसलिए उपचारसे काल द्रव्य मानना ठीक है, क्योंकि सर्व बस्तु अपने २ काल ( ऋतु ) मर्यादा पर होती हैं, ऐसे ही पुद्गलके विषय नवीनपना और जीर्णपनाका निमित्त काल है, सो काल एक प्रदेशी समय लक्षण है, सो समयपना जो बर्तमान वत्तें हैं सो ही लेना, क्योंकि अतोत (भूत ) समयका बिनास है, और अनागत (भविष्यत) समयका उत्पाद हुआ नहीं, सो. वर्तमान समय भी अनन्ता हैं, क्योंकि जितना पुद्गल दुव्यका पर्याय है. उतना ही बर्तमान समय है, यद्यपि सर्व जगह एक समय वतॆ है, तथापि. कोई अपेक्षासे अनन्तके विषय होनेसे अनन्ता ही कहने में आता है। (शंका ) एक समय है तो एक चीज अनन्तके साथ क्यों कर लगेगी ऐसी अन्यमती अर्थात् वेदान्ती शङ्का करता है। (उत्तर) उसको ऐसा उत्तर देना चाहिये कि, हे भोले भाई जैसे तुम्हारे ब्रह्मकी सत्ता एक है ओर वो सत्ता सर्व जगह है, उसी सत्तासे सब सत्तावाले हैं, तैसे ही काल की भी एक समय बर्तमान है, उसी समयसे सब जगह बर्तमान जान लेना। (प्रश्न ) समयतो एक है और पूर्वापर कोटी बिनियुक्त है तो आवलिकादी व्यवहार किसरीतिसे होगा, क्योंकि असंख्यात समय मिलनेसे एक आवलिका होती हैं। (उत्तर ) भो देवानुप्रिय इस बीतराग सर्वज्ञ देवका अनेकान्त सिद्धान्त हैं सो अनेक रीतिसे शास्त्रोंमें कथन हैं सो ही दिखाते हैं, कि. Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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