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________________ [ द्रव्यानुभव - रत्नाकर । ३६ ] अचल, अविनाशी, अरूपी आदिक अनेक गुण है, परन्तु इस जगह मुख्यतामें जो गुण थे उन्हीका वर्णन किया है, अब पर्याय कहते हैं कि १ अव्यावाध, २ अनवगाह, ३ अमूर्तिक, ४ अगुरु लघु, यह चार पर्याय मुख्य हैं, बाकी जैसे गुण अनेक हैं तैसे पर्याय भी अनेक हैं। और एक जीवके असंख्य प्रदेश हैं। इस रीति से जिन आगममें जीव द्रव्यका स्वरूप कहा है । 1 (प्रश्न ) आपने जो जीवका लक्षण कहा है सो सामान्य लक्षण तो हरएक जीवमें मिलता है, परन्तु विशेष करके जो जीवके छः लक्षण कहे वोछः लक्षण एकेन्द्री आदिक जीव अर्थात् जिसको थावर कहते हो उसमें येछः लक्षण नहीं घट सक्त, इसलिये जीवका जो लक्षण कहा सो सिद्धन हुआ, क्योंकि पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पती, इन पांचो में जोवके छः लक्षण नहीं घटसक्ते, क्योंकि ये जड़पदार्थ है, और आपने ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप, बीर्य और उपयाग ये छः लक्षण जीवमें माने हैं और ये छ:ओं लक्षण वनस्पति आदिकमें नहीं घट सक्त, इसलिये जिसका लक्षणही न बना उसका गुण, पर्याय कहना ही व्यर्थ है । दूसरा जो आपने पहलेतो जीव द्रव्य कहा, फिर गुण कहा, फिर पर्याय कहा, तो तुम्हारे शास्त्रोंमें अर्थात् जिन मतमें द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दोहो कहे हैं, गुणार्थिकतो कहा नहीं, इसलिये गुणका कहना व्यर्थ हुआ । यदि उक्त' (दब्ब नया पज्जव नया ) ऐसा शास्त्रों में कहा है, इसलिये गुणका कथन करना ठीक न ठहरा । तीसरा एक जीवके असंख्य प्रदेश कहे सो भोठीक नहीं, क्योंकि प्रदेश अर्थात् अवयववाली वस्तुनाशवान अर्थात् सदा नही रहती, इसलिये प्रदेशवाला अर्थात् भवयवी जीवमानोगे तो वो जोव अनादि अनन्त न बनेगा, किन्तु नाशवाला हो जायगा । इसलिये जीवके प्रदेश कहना भीव्यर्थ है, क्योंकि जीवतो निर्अवयवी है। इस रीतिसे जो तुमने जीवका प्रतिपादन किया सो लक्षण गुण प्रदेशादि कथन करना व्यर्थ है 1 (उत्तर) भो देवानुप्रिय यह तुम्हारी शुष्क तर्क विवेक बिना Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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