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________________ [२१ द्रव्यानुभव-रत्नाकर।] संसारी जीव मात्रमें क्षुधाका अर्थात् खानेका स्वभाव होता हैं, अजीव में नहीं। इसलिये क्षुधाका स्वभाव सो हो स्वभाव जानना । तीसरा निमित कहता जो २ कारण रसोई जीमने की थाली, पत्तल, अथवा हाथ आदि पर रखकर खाना, उसका नाम नियत अर्थात् निमित कारण विदून कार्य की सिद्धि नहीं होती हैं। इसलिए तीसरा नियत समवाय हुआ। अब चौथा पूर्वकृत समवाय कहते हैं कि, पूर्व नाम पहिले जन्ममें जो जोवने भोगादि बांधा है उसीके अनुसार उस को प्राप्ति होगा! क्योंकि देखो जो पूर्व जन्ममें उसदिन उसो समय में उसके खानेका संयोग न होगा तो उस वक्त अनेक तरहके विघ्न आकर खड़े होंगे अर्थात् कोई न कोई ऐसा कारण होगा कि उस वक्तमें वह न जीम सकेगा। इसलिये पूर्वकृत समवाय हुआ। अब पांचवां पुरुषार्थ अर्थात् उद्यम करना, क्योंकि जब तक हाथसे कौर (ग्रास ) मोड़े (मुख ) में न देगा और मुखसे अथवा दांतोंसे चिगद कर गलेसे न उतारे तब तक वह भीतर न जायगा, इत्यादि क्रियाका करना सो ही पुरुषार्थ है। इसरीतिसे यह पांच समबाय हुए। ___ इस जगह दुःख गर्भित, मोह गर्भित वैराग्य वाले जिन आगमके रहस्यके अजान तोसरे नियत समवायके ऊपर ऐसी तर्क करेंगे कि नियत नाम निश्चयका अर्थातू भवितव्यताका है ऐसा शास्त्रोंमें लेख है। फिर तुम नियतको निमित कारणमें क्यों मिलाते हो? . तब उनसे कहना चाहिये कि हे भोले भाइयो; कुछ गुरुकुल वासका सेवन करो जिससे तुमको शास्त्रका रहस्य मालम हो, क्योंकि देखो जब नियत कहता निश्चयको अङ्गीकार करें, तब तो सर्वज्ञ देवका कहा हुआ पूर्वकृत और पुरुषाकार व्यर्थ होजायगा। क्योंकि निश्चय जो वस्तु होने वाली होती तो पूर्वकृत और पुरुषाकारको कदापि सर्वज्ञ देव न कहते। इसलिए गुरुके बिना जिनआगमका रहस्य नहीं मालम होता। यदि स्वतः प्राप्त होता तो जिनधर्ममें इतना कदाग्रह कदापि न चलता और जुदै २ गच्छ आमना बांधकर अपनी २ जुदी २ कल्पना न करते। इसलिये नियत कहनेसे निमित्त कारण ही मानना Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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