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________________ [द्रव्यानुभव-रत्नाकर रीति से चावलों के भी * में रस, वर्ण, स्पर्श, गन्ध, साठी है, कोई हंस है कोई उष्णा है, इस रीति से का अनेक भेद हैं। जैसे ऊपर लिखी हुई चीजों में रस, बर्ण... आदि भेद होने से भेद दिखाये उसी रोति से मनुष्यों में भी भेट सक्ष्म बुद्धि से मनुष्यों में १४ लाख योनी जानो, क्यों नाहक ठानो, सर्वज्ञों के वचन मानो, आँख मीच कर हृदयकमल ऊपर विचा कर पहचानो। इस रीति से चार गती में चौरासी ( लास जीवायोनि का जुदा २ वर्णन सर्वज्ञ के सिवाय दूसरा कोई नहीं कर सकता। और अजीव का भी इस रीति से भिन्न २ निर्णय श्रीवीतराग सर्वशदेव ने किया है सो किश्चित् पीछे लिख चुके हैं। इस रोति से प्रमेयरूप चतुर्थ सामान्य लक्षण का वर्णन किया। . सत्त्व। ... अब पांचवां सत्त्वका वर्णन सुनो कि जो वस्तुका हम ऊपर वर्णन कर चुके हैं वह सब सत् हैं। सत्का लक्षण भी तत्त्वार्थ सूत्र में ऐसा कहा है कि "उत्पादव्ययधौव्ययुक्त सत" सो उत्पाद व्यय लक्षण के ऊपर आठ पक्ष कह चके है और भी किंचित इस जगह दिखाते हैं कि धर्मास्तिकायका असंख्यात प्रदेश है। उन असंख्यात प्रदेशमें एकके अगुरुलघुपर्याय असंख्यात हैं, और दूसरे प्रदेश के अनंत अगुरुलघु है, • तीसरे प्रदेशके असंख्यात हैं। इन असंख्यात-प्रदेशों के अगुरुलघु। । यमें कमी और वृद्धि होती रहती है। इससे. वे अगुरुलघु पया चल हैं, क्योंकि जिस प्रदेश में असंख्यात है, उसी प्रदेशम वृद्धि होती है और अनंतकी जगह असंख्यातकी वृद्धि हति असंख्यातकी जगह संख्यातकी वृद्धि होती है। इसरीतिस असंख्यात था उसमें अनंतकी तो वद्धि हुई और असंख्यातकी हा ऐसे ही अनंतकी जगह असंख्यातकी वृद्धि और अनंतक जिस जगह संख्यातको वृद्धि हुई उस जगह असंख्यात इसरीति से इस लोकप्रमाणमें जो धर्मास्तिकाय के अस उन सर्व प्रदेशों में एक कालमें अगरुलप पर्याय फिरता । व अगुरुलघु पर्याय सदा ह, उसी प्रदेशमें अनंतकी तिकी वृद्धि होती है, और है । इसरीतिसे जिस प्रदेशमें और असंख्यातकी हानी हुई, और अनंतकी हानी, और अस ख्यातको हानी हुई। के असंख्यात प्रदेश है, फिरता रहता है, क्योंकि Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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