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________________ द्रव्यानुभव - रत्नाकर । ] [ १८५ करके उस सामर्थ्य और संकेत से अर्थ-बोध का कारण शब्द होता है । परन्तु उसमें यथार्थता और अयथार्थता, कहनेवाले पुरुष का गुण और दोष के अनुसार, होती हैं। इस रीति से सर्वत्र ध्वनि (शब्द) विधि और प्रतिषेध स्वार्थ धारण करती हुई सप्त-भंगीको प्राप्त करती है 1 एक वस्तुके धर्म अर्थात् गुण • अथवा पर्यायमें अनुयोग ( प्रश्न ) वशले अविरोध से व्यस्त और समस्त जो विधि और निषेध, उनकी कल्पना करके 'स्यात्' शब्द युक्त जो सात प्रकारका वाक् प्रयोग है उसका नाम सप्तभंगी है। इस रीतिसे सूत्रोंका भावार्थ कहा । सप्त-भंगी । अब इस जगह किंचित् सप्तभंगीका स्वरूप लिखाता हूं। प्रथम सात ७ भंगीके नाम कहते हैं १ स्यात् अस्ति २ स्यात् नास्ति ३ स्यात् अस्ति नास्ति ४ स्यात् अवक्तव्य ५ स्यात् अस्ति अवक्तव्य ६ स्यात् नास्ति अवक्तव्य ७ स्यात् अस्ति नास्ति युगपत् अवक्तव्य । स्यात् शब्द का अर्थ यह है कि स्यात् अव्यय है सो अव्ययके अनेक अर्थ होते हैं, कहा है कि “धातुनामाव्ययानि अनेकार्थानि बोध्यानि” इस वास्ते स्यात्पदके अनेक अर्थ हैं। इस सप्तभंगीको देव के ऊपर उतार कर इस जगह दिखाते हैं। उसी रीतिले हरेक चीजके ऊपर उतरती है । इसलिये इसको देवके ऊपर उतारकर जिज्ञासुओंके समझानेके वास्ते लिखाते हैं । स्यात् देव अस्ति - स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल, स्वभाव करके देव है, यह प्रथम भांगा हुआ । स्यात् देव नास्ति - देव जो है सो स्यात् नहीं है, किस करके ? कुदेव करके, क्योंकि कुदेवका द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव करके नास्तिपना है। जो कुदेव करके देवमें नास्तिपना न माने तो हमारा कोई कार्य सिद्ध ही नहीं होय, क्योंकि कुदेव में तो कुगती देनेका स्वभाव है, और देवमें देवगति और मोक्ष देनेका स्वभाव हैं। जो देवमें कुदेवका नास्तिपणेका स्वभाव न होता तो हमारा मोक्ष-साधनका निमित्त कारण कभी नहीं बनता । इस वास्ते स्यात् देव नास्ति, यह दूसरा भांगा १५ i Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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