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________________ [द्रव्यानुभव-रक्षाकर। १७८] संस्कारसे भूतकालके अर्थका, उसी माफिक आकारको देखा स्मरण होना उसका नाम स्मरणशान है। अब दूसरा प्रत्य मिशान उसको कहते हैं कि जिसमें अनुभव और पह दोनों हेतु अर्थात् कारण है, जैसे गऊको देखने से गषयका ज्ञान होता है इसका नाम प्रत्यभिशान है। अब तीसरा तर्क उसको कहते हैं कि 'यत्सारखे तत्सत्त्वं' 'यस्याभावे तस्याप्य. भाषः पर्यात् एक वस्तुको विद्यमानता में दूसरी चीज़की अवश्य पिपमानता हो और उसके अभाव में उस चीज़ का भी अवश्य ममाव हो, ऐसे झान को तर्क कहते हैं। जैसे “यत्र २ धूमस्तत्र २ परिः -जिस जगह धूम है उस जगह वहि अवश्यमेव होगी मौर जिस जगह पर नहीं है उस जगह धुवाँ कदापि न होगा। क्योंकि धूमके बिना अग्नि तो रह सकती है परन्तु बिना अग्निके jषा कदापि नहीं रह सकता, इस ज्ञानका नाम तर्क है । अब चौथा अनुमान कहते हैं कि अनुमानके दो भेद हैं, एक तो स्वार्थ, दूसरा परार्थ। स्वार्थअनुमान उसको कहते हैं कि, निजसे हेतुका दर्शन और सम्बन्धका स्मरण करके साध्यका ज्ञान होना उसका नामः स्वार्थ मनुमान है। और परार्थ उसको कहते हैं कि, जो दूसरेको वैसे ही शाम करावे, उसका नाम परार्थ भनुमान है। इस अनुमानमें व्याप्ति मादिक भनेक रीतिसे प्रतिपादन होता है। सो इसका विस्तार तो स्थावादरमाकर, समतितर्क भादिक अनेक प्रन्थों में है। परन्तु इस जगह तो नाममात्र कहता है। लिङ्ग देखनेसे लिङ्गिका ज्ञान होना, किसी पुरुषने पर्वतपर धूम देखा, इस धूमको देखनेसे अनुमान किस पर्वतमें भग्नि है। सो उस धुप रूप लिङ्ग देखनेस जो पनि उसका अनुमान किया। इसरीतिसे अनुमानका ! करते हैं। इसके पञ्च अवयव है-एक तो पक्ष, दूसरा हेतु दृष्टान्त, चौथा उपनय, पांचवा निगमन। जिसमें बुद्धिमान तो दो ही अघयवसे अनुमान यथावत हो जाता है। और जिज्ञासु हैं, उनके वास्ते पांचों अवयव है। इस अनुमान Scanned by CamScanner तीसरा बुद्धिमान् पुरुषको जाता है। और जो मन्दमती । इस अनुमानका विशेष
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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