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________________ [ द्रव्यानुभव- रत्नाकर। १६२ ] चाक्षुष ज्ञान होता है, जिस जगह श्वेतता - विशिष्ट कंचुक और ब्राह्मणत्व रूप विशेषण का ज्ञान और नेत्र का संयोग होता है। तिस जगह श्वेत कंचुकवाला ब्राह्मण है ऐसा चाक्षुष ज्ञान होता है, जिस जगह उष्णीष और ब्राह्मण रूप दो विशेषण का ज्ञान होता है। तिस जगह उष्णीषवाला ब्राह्मण है ऐसा चाक्षुष ज्ञान होता है, जिस जगह श्वेतता - विशिष्ट उष्णीष रूप विशेषण का और ब्राह्मणत्व रूप विशेषण का ज्ञान और नेत्र- संयोग होता है तिस जगह श्वेत उष्णीषवाला ब्राह्मण है ऐसा चाक्षुष ज्ञान होता है, जिस जगह उष्णीष, कंचुक, यष्टि, ब्राह्मणत्व इन चार विशेषणोंका ज्ञान और नेत्रका • संयोग होता है तिस जगह उष्णीषवाला कंचुकवाला यष्टिधर ब्राह्मण है ऐसा चाक्षुष ज्ञान होता है, और जिस जगह श्वेतता - विशिष्ट उष्णीष विशेषण का और श्वेतता विशिष्ट कंचुक विशेषण का तथा यष्टि और ब्राह्मणत्व रूप विशेषण का ज्ञान और नेत्र का संयोग होता है तिस जगह श्वेत- उष्णोष श्वेत-कंचुकी यष्टिधर ब्राह्मण है ऐसा चाक्षुष ज्ञान होता है । इस रीति से जिस विशेषण का पूर्व ज्ञान होता है, तिस ही विशेषणसे विशिष्टका इन्द्रियसे ज्ञान होता है, सो इन्द्रियका सम्बन्ध तो सर्व जगह तुल्य है, विशिष्ट प्रत्यक्षकी विलक्षणता हेतु विलक्षण विशेषण ज्ञान हैं। यदि विलक्षण विशेषण होने ज्ञानको कारण नहीं मानें तो नेत्र संयोगले ब्राह्मणके सर्व ज्ञान तुल्य । चाहिये । जिस जगह घटसे नेत्रका तथा तुक्का संयोग होता है, तिस जगह कदाचित् घट है ऐसा प्रत्यक्ष होता है, कदाचित् पृथ्वी है ऐसा ज्ञान होता है, कदाचित् घट-पृथ्वी है ऐसा ज्ञान होता है। जिस जगह घट स्वरूप विशेषणका ज्ञान और इन्द्रियका संयोग होता है तिस जगह घट है ऐसा प्रत्यक्ष होता है, जिस जगह पृथिवीत्व रूप विशेषण का ज्ञान और इन्द्रियका संयोग होता है तिस जगह पृथिवी है ऐसा प्रत्यक्ष होता है, और जिस जगह घटत्व-पृथिवीत्व इन दोनों विशेषणका ज्ञान और इन्द्रि यका संयोग होता है तिस जगह घट- पृथ्वी हैं ऐसा प्रत्यक्ष होता है । Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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