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________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर । ] १६० ] इस रीति से न्याय- शास्त्र में प्रत्यक्ष प्रमाण का सिद्धान्त कहा है। परन्तु इस सिद्धान्त में भी न्याय मत के आचार्य अपनी २ जुदी २ प्रक्रिया कहते हैं । सो भी किञ्चित् दिखाता हू'-- गौरीकान्त भट्टाचार्य ऐसा कहता है कि, प्रत्यक्ष-प्रमः का इन्द्रिय करण नहीं है, किन्तु जो इन्द्रिय के सम्बन्ध व्यापार कहे हैं वे करण है, और इन्द्रिय कारण हैं । उनका अभिप्राय यह है कि, व्यापारवाला कारणको करण नही कहना चाहिये, किन्तु जिसके होने से कार्य्य में विलम्ब नहीं होय, और जिसके अव्यवहित- उत्तर-क्षण में कार्य्य होय, ऐसे कारण को करण कहना चाहिये। इन्द्रियका सम्बन्ध होने से प्रत्यक्ष प्रमा. रूप कार्य में विलम्ब नहीं होता है, किन्तु इन्द्रिय सम्बन्ध से अव्यवहितउत्तर- क्षण में प्रत्यक्ष-प्रमा रूप कार्य्य अवश्यमेव होता है, इसलिये हिन्द्रय का सम्बन्ध ही करण होने से प्रत्यक्ष प्रमाण है, इन्द्रिय नहीं । इस आचार्य के मत में घट का करण कपाल नहीं, किन्तु कपाल का संयोग करण है, और कपाल, घट का कारण तो है किन्तु करण नहीं, तैसे ही पट के कारण तन्तु नहीं, किन्तु तन्तु-संयोग है, तन्तुः पट के कारण हैं किन्तु करण नहीं। इस रीति से प्रथम पक्ष में जो व्यापार रूप कारण माने हैं सो इस आचार्य ने करण माने हैं, और जो करण माने हैं सो इस आचार्य ने कारण माने हैं। और प्रत्यक्ष ज्ञान का · I 1 आश्रय आत्मा है सो ही कता है । उस ही को प्रमाता और ज्ञाता कहते हैं । और प्रमा- ज्ञान के कर्त्ता को प्रमाता कहते हैं और ज्ञान का कर्त्ता ज्ञाता कहता है. चाहे ज्ञान भ्रम होय अथवा प्रमा होय । और न्याय सिद्धान्त में जैसे प्रमा-ज्ञान इन्द्रिय- जन्य है तैसे ही भ्रम ज्ञान भी इन्द्रिय-जन्य है, परन्तु भ्रम ज्ञान का कारण जो इन्द्रिय उसको भ्रम ज्ञान का करण तो कहते हैं परन्तु प्रमाण नहीं कहते हैं, क्योंकि प्रमा का असाधारण कारण ही प्रमाण कहलाता है । अब इस जगह किश्चित् न्याय मत की रीतिसे भ्रमज्ञान की प्रतिया दिखाते है-जिस जगह भ्रम होता है तिस जगह न्याय मनमें यह रीति है कि दोपसहित- नेत्र का संयोग रज्जु ( सीदड़ा, जेवड़ी, रहली ) Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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