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________________ [व्यानुभव-रत्नाकर माणसे होय नही। इसलिये प्राण संयोग प्रत्यक्षका हेत की गन्धका घ्राणसे साक्षात् सम्बन्ध नहीं है, किन्तु पुष्पादिकमें - समवाय सम्बन्ध है, और घ्राणके साथ पुष्पादिकका संयोग स. न्य है, इसलिये प्राण-संयुक्त-समवाय सम्बन्ध से गन्धका घ्राणज प्रल होता है, अन्य गुणका घ्राणसे प्रत्यक्ष होय नहीं। परन्तु गन्धमें जो गन्धत्व जाति, तिसका और गन्धत्वके व्याप्य जो सुगन्धत्व-दुर्गन्धन तिसका भी घ्राणज प्रत्यक्ष होता है, तैसे ही गन्ध अभावका भी प्राणज प्रत्यक्ष होता है। क्योंकि जिस इन्द्रियसे जिस पदार्थका ज्ञान होय तिसकी जातिका और तिसके अभावका भी उसी इन्द्रियसे ज्ञान होता है। जिस जगह गन्धत्वका और सुगन्धत्व-दुर्गन्धत्वका प्रत्यक्ष होता है, तिस जगह · घ्राण-संयुक्त-समवेत-समवाय सम्बन्ध .प्राणज प्रत्यक्षका हेतु है, क्योंकि घ्राणसे संयुक्त जो पुष्पादिक, उसमें समवेत गन्ध और तिसमें समवेत गन्धत्वादिक है। तैसे ही पुष्पके सुगन्धमें दुर्गन्ध्रत्वके अभावका घ्राणज प्रत्यक्ष होता है, तिस जगह घाणका दुर्गन्धत्व अभावसे स्व-सम्बद्ध-विशेषणता सम्बन्ध है, क्योंकि संयुक्त-समवाय सम्बन्धसे घ्राण सम्बद्ध जो सुगन्ध, तिसमे दुर्गन्धत्वाभावका विशेषणता सम्बन्ध है। जिस जगह पुष्पादिक दूर होय और गन्धका प्रत्यक्ष होय, तिस जगह यद्यपि पुष्पमें क्रिया दीखे नहीं, इसलिये पुष्पादिकका घाणसे संयोगके अभावसे प्राण संयुक्त समवाय सम्बन्ध संभवे नहीं, तथापि गन्ध तो. गुण है. इस केवल गन्धमें क्रिया होय नही, किन्तु गन्धके आश्रय जो पुष्पादिक . उनके सूक्ष्म अवयवमें क्रिया होकर घाणसे संयोग होता है, . लिये प्राण-संयक्त जो पुष्पादिकके अवयव. तिसमें गन्धका समवाय होनेसे प्राण-संयक्त-समवाय सम्बन्ध ही गन्धके घ्राणहेतु है । इस रीतिसे घ्राणज-प्रत्यक्षके हेतु तीन ही सम्बन्ध है। हैं, प्राण इन्द्रिय करण है और घाणज-प्रत्यक्ष-प्रमा फल है । इसरीतिसेश्रोत्र आदिक पांच इन्द्रियोंसे बाह्य पदार्थकाज्ञी र मात्मा और आत्माके सुखादिक धर्म और आत्मत्व धके प्राणज प्रत्यक्षका न ही सम्बन्ध हैं, वे व्यापार ह्य पदार्थका ज्ञान होताहै। और आत्मत्व जाति तथा Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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