SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ द्रव्यानुभव-रत्नाकर। । नेत्र-संयुक्त-समवेत-सम १५४] विषय हैं, तिसकी रूपत्वादिक जाति का नेत्र-संयुक्त-स वाय से प्रत्यक्ष होता है। परन्तु जो रसादिक चाक्षष ज्ञान नही, तिसमें रसत्वादिक जातिसे नेत्र का संयुक्त-समवेत-सा सम्बन्ध होनेसे भी चाक्षुषप्रत्यक्ष होवे नही। इसलिये यह बात सिद्धा कि उदभूत रूपवाले द्रव्योंका नेत्रके संयोगसे चाक्षुष ज्ञान होता है।' उदभूत रूपवाले द्रव्यकी नेत्र योग्य जातिका, और नेत्र योग्य गुणका संयुक्त-समवाय-सम्बन्धसे चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है, और नेत्रयोग्य गुण की रूपत्वादिक जातिका नेत्र-संयुक्त-समवेत-समवाय सम्बन्ध से चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है। जिस जगह भूतलमें घट-अभाव का चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है, तिस जगह भूतलमें नेत्रका संयोग सम्बन्ध है। इस लिये नेत्र सम्बद्ध भूतलमें घट-अभावका विशेषणता सम्बन्ध है। वैसे ही नील घटमें पीतरूपके अभावका चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है, तिस जगह नेत्र संयोग होनेसे नेत्र-सम्बद्ध नील घटमें पीतरूप अभावका विशेषणता सम्बन्ध है । तैसे ही घटके नील रूपमें पीतत्व जातिके अभावका चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है वहां नेत्रसे संयक्त-समवाय-सम्बन्धवाला नील रूप है, इसलिये नेत्र सम्बद्ध जो नील रूप तिसमें पीत-अभावका विशेषणता सम्बन्ध होनेसे नेत्र-सम्बद्ध-विशेषणता सम्बन्ध है। इस प्रकार नेत्र संयोग, नेत्र-संयुक्त-समवाय, नेत्र-संयुक्त समवेत-समवाय, और नेत्र-सम्बल-विशेषणता, यह चार सम्बन्ध चाक्षुष प्रमाके हेतु हैं, वे ही व्यापार हैं, और नेत्र करण है, चाक्षुष प्रमा फल है। जैसे त्वक् और नेत्रसे द्रव्यका प्रत्यक्ष होता है तैसे है इन्द्रियसे द्रव्यका तो प्रत्यक्ष होय नहीं, परन्तु रसका और रसत स्वादिक रसकी जातिका, रस-अभावका तथा मधुरादिक अम्लत्वादिक जातिके अभावकारसना प्रत्यक्ष होता है। इसार प्रत्यक्षके हेतु रसना इन्द्रियसे विषयके तीन ही सम्बन्ध । दिखाते हैं-एक तो रसना-संयुक्त-समवाय, २ रसना तय समवाय, ३ रसना-सम्बद्ध-विशेषणता। जिस जगह . व-मधर " मधुरादिक रसमें ॥६। इसलिये रसना हो सम्बन्ध है, सोही रसना संयुक्त-समवेतन जगह फलके मधुर Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy