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________________ दृष्यानुभव रखाकर।] [१५१ अपादान कारण घट और त्वक् दोनों हैं, इसलिये त्वक्-इन्दिय-जन्य वह योग है, और त्वक् इन्द्रियका कार्य जो त्वचा-प्रमा उसका जनक हैं, सकारणसे त्वक्से घटका संयोग व्यापार है। जिप्त जगह त्वक्से घटकी घटत्व-जातिका और स्पर्शादिक गुणका त्वचा प्रत्यक्ष होता है, उस जगह त्वक् इन्दिय करण है और प्रत्यक्ष-प्रमा फल है, और संयुक्तसमवाय सम्बंध व्यापार है, क्योंकि त्वक् इन्दियसे संयुक्त कहिये संयोग घाला जो घट, उसमें घटत्व जातिका और स्पर्शादिक गुणका समवाय हैं। तैसे ही जहां घटादिकके स्पर्शादिक गुणमें जो स्पर्शवादिक जाति, उसकी त्वचा-प्रत्यक्ष-प्रमा होय, उस जगह त्वक् इन्द्रिय करण. हैं, स्पर्शत्वादिककी प्रत्यक्ष-प्रमा फल है, और संयुक्तसमवेत-समवाय सम्बंध है, सो व्यापार है ; क्योंकि त्वक् इन्द्रियसे संयुक्त जो घट, उसमें समवेत कहिये समवाय सम्बंधसे रहनेवाले स्पर्शादिक, उसमें स्पर्शत्वादिक जातिका समवाय हैं। संयुक्तसमवाय और संयुक्त-समवेत-समवाय ये दोनों सम्बन्धों में समधाय भाग तो यद्यपि नित्य है, इन्दिय-जन्य नहीं, तथापि संयोगवालेको संयुक्त कहते हैं सो संयोग जन्य हैं। इसलिये त्वक् इन्द्रियकी त्वक् जन्य होनेसे, त्वक्संयुक्त-समवाय और त्वक्-संयुक्त-समबेतसमवाय त्वक्-इन्द्रिय-जन्य हैं और त्वक्-इन्द्रिय-जन्य जो त्वचा-प्रमा, उसका जनक हैं, इसलिये व्यापार है। जिस जगह पुष्पादिक कोमल व्यमें कठिन स्पर्शके अभावका और शीतल जलमें उष्ण स्पर्शके अभावका त्वचा प्रत्यक्ष होता है, तिसजगह त्वक् इन्द्रिय करण है और अभावकी त्वचा-प्रमा फल है, और इन्द्रियसे अभावका त्वक-संयुक्तविशेषणता सम्बन्ध हैं सो व्यापार है, क्योंकि त्वक्-इन्द्रियका घटादिक दव्यसे संयोग है और त्वक्-संयुक्त कोमल द्रव्यमें कठिन-स्पर्श-अभावका विशेषणता सम्बन्ध है। जिस जगह घट स्पर्शमें रूपत्वके अभावका त्वचा प्रत्यक्ष होता है तिस जगह त्वक-संयुक्त घटमें समवेत जो स्पर्श, उसके विषय रूपत्व-अभावका विशेषणता सम्बंध होनेसे त्वक्सयुक्त. समत-विशेषणता सम्बंध है। Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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