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________________ ग्रन्थकार को जीवनी | परन्तु मेरी और उनकी प्रकृति नहीं मिलतेसे मैं अजमेर चला आया । पश्चात् चौमासेके श्री सुखसागरजी महाराज जयपुरसे आये ओर मैं उनसे मिला। उस वक्त उन्होंने मुझसे कहा कि भाई छः महीनेके भीतर योग नहीं वहे तो सामायिक चारित्र गल जाता है। जब मैं उनकी आज्ञा से भगवान सागरजी के साथ नागौर गया और वहां योग वहन किया, तथा बड़ी दिक्षा ली। उस समय मोहनलालजी मौजूद थे। बड़ी दिक्षाके गुरु मैं श्री सुखसागर जी महाराजको मानता हूं। और वहांसे फलोधी जायकर चौमासा किया और उस जगह सारस्वत भी पढ़ी। फिर नागौर में चतुर्मासा किया और उस जगह मैंने चन्द्रिका भी देखी। फिर अजमेरमें आयकर वेद भी पढे और धर्म शास्त्र भी देखे तथा व्याख्यान भी बांचने लगा तथा श्रावकोंका व्यवहार उनको कराने लगा। मैं अनेक स्वामी, सन्यासी, ब्राह्मण लोगोंसे, जो कि विद्वान थे, मिलता रहा और स्वमतके यती वा सम्बेगी लोगोंसे वा ढूंढीये सबसे मिलता रहा । परन्तु उनके आचरण देखे जिसका हाल तो तीसरे वा चोथे प्रश्नके उत्तर में कहूंगा, लेकिन यहां कुछ कवित्त कहता हूं ॥ चोबे चले छब्बे होन, छत्रेन को बड़ाई सुन, निश्चयमें दूबे बसे दुबे ही बनावे है | पक्षपात रहित धर्म, भाष्यो सर्वज्ञ आप, सो तो पक्षपात करि, सब धर्मको डुबावे हैं ॥ पंचम काल दोष देत, इन्द्रियनकां भोग करे, भीतर न रुचि क्रिया, बाहर दिखलावे हैं । चिदानन्द पक्षपात, देखी अब मुल्क बीच, समझे नहीं जैन नाम, जैनको धरावे है ॥ १ ॥ पांच सात बरस क्रिया, करके उत्कृष्टि आप, बनियोंको वहकाय, फिर माया चारी करत है। मंत्र यंत्र हानि लाभ, कहे ताको बहु मान, करे झूठ सुन आये तो आगे लेन जात है | शुद्ध परिणति साधु, रञ्जन न कर सके, लोगोंको याते कोई मतलब बिन कबहूं पास नहिं आवत है I चिदानन्द पक्षपात, देखी इस मुल्क बीच, समझे नही जैन नाम, जैनको धरावे हैं ॥ २ ॥ पञ्चम काल दोष देत, जैणा उन्मन्त भये, थापत अपवाद करे, मौंडेकी कहानी है । द्विविध धर्म कह्यो, निश्चय व्यवहार लियो, कारण अपवाद Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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