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________________ [ द्रव्यानुभव-रत्नाकर | १२० ] फिर तीसरी दफे जौनसी मात्रा देनी होय, उतनेही दफे ध्वनि करे । अक्षर इसरीति से दूर देश में भी बार्तालाप होता है । और जो कई अ मिलाकर ध्वनिमें कहना होय तो जिस अक्षरको पहले कहना होय उस अक्षरके वर्ग और अक्षरको कहकर फिर दूसरे अक्षर और वर्गको कहे, सो जितने अक्षर मिलाने होय उतने ही अक्षरोंके वर्ग और अक्षरोंकी ध्वनि करके बाद सबसे पीछे मात्राकी ध्वनि करे तो मिला हुआ अक्षर भी उस सांकेतवालेको ध्वनिसे मालूम हो जाय । अब इसकी एक दूसरी रीतिभी और कहते हैं कि - सोलहतो स्वर होते हैं और तैंतीस (३३) व्यंजन होते हैं और तीन अक्षर क्ष, त्र, ज्ञ, के जुदे होते हैं । इस रीतिसे कुल बाचन (५२) अक्षर होते हैं, सो इन अक्षरों के सांकेत करनेमें दो ध्वनिमें ही सांकेत करनेसे मतलब यथावत मालूम हो जाता है सोही दिखाते हैं कि इन बावन (५२) अक्षरोंमें से जिस अक्षरको पेश्तर कहना होय उतनो ही ध्वनी करें, फिर पीछेसे मात्राकी ध्वनि करे, इस रीतिसेभी ध्वनि रूप इशारा होने से जहां तक ध्वनि वा इशारा होगा, तहां तक वह सांकेतवाला समझ लेगा । और इसका विशेष खुलासातो गुरु चरण सेवाके बिना लिखा हुआ देखकर बोध होना मुशकिल है, हमने इस बर्तमानकालकी व्यवस्था देखकर इसका किंचित् खुलासा किया है, कि बर्तमानकालमें अगरेजी पढ़े हुए लोग इन अ ंगरेजोंके तार आदि देखकर कहते हैं कि अगरेजों के पेश्तर यह बातें नहीं थी, इस लिये किंचित् इशारा किया है, कि बिनय, बिवेक, काल दूषणसे जिज्ञासुमें न रहा और छल, कपट, झूठ, मायावृति, तर्क विशेष बढ़गया, इससे गुरुआ दिकका विद्या देनेसे चित्त हटगया। इस रीतिसे ध्वनिरूप शब्दका वर्णन किया । . अब जो बर्णात्मक शब्द हैं उसके अनेक भेद हैं सोही दिखाते हैकि एकतो संस्कृत वा प्राकृत आदि जो व्याकरण हैं, उस ब्याकरणकी रीतिले जो धातु प्रत्ययसे शब्द बनता है, उस शब्दको अंगीकार करे, सो उसके तीन भेद होते हैं- एकतो यौगिक, २ रूढ़ि, ३ योगरूढि, अब इन तीनोंका अर्थ करते हैं-कि योगिकतो उसको कहते हैं कि "पब Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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