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________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर। [ १११ एक जीव द्रव्य कहा तो सर्व जीव द्रव्यका संग्रह होगया, परन्तु अजीव सब टल गया। इसका नाम विशेष संगह हैं। ___इस संगृह नयका विस्तार बहुत है क्योंकि देखो “विशेषाविशेष" ग्रन्थमें संगृहनयके चार भेद कहे हैं सो भी दिखाते हैं, कि एक वचनमें एक अध्यवसाय उपयोगमें गृहण आवे तिसका सामान्य रूपपने सर्व वस्तुको गुहण करे सो संग्रह कहिये, अथवा सर्व भेद सामान्य पने गृहण करे तिसको संग्रह कहिये, अथवा 'संगोहते' समुदाय अर्थ गुहण करे, वा बचनको गृहण करे सो बचन संग्रह कहिये, सो इसके चार भेद हैं। १ संगृहीतसंग्रह, २ पण्डितसंग्रह, ३ अनुगमसंग्रह, ४ व्यतिरेकसंग्रह। प्रथम भेद कहते हैं कि सामान्य पने बचनके बिना जो ग्रहण होय ऐसा जो उपयोग, अथवा ऐसा जो धर्म कोई बस्तुके विषयते संग्रह करे, अथवा एक जाति एकपनो माने, वा एक मध्ये सर्वको गृहण करे, यह प्रथम भेद हुआ। .. अब दूसरा भेद पण्डित संग्रह का कहते हैं कि, जैसे “एगे आया एगे पुग्गला” इति वचनात्, इस बचनसे सब बस्तुको संग्रह करे, क्योंकि देखो “एगे आया" कहता जीव अनन्ता है, “गे पुग्गला" कहता पुद्गलपरमाणु अनन्ता है, परन्तु एक जाति होनेसे एक बचनसे सबका संग्रह कर लिया, इस लिये इसको पण्डित संग्रह कहा। __ अब तीसरा भेद कहते हैं, कि सब समयमें अनेक जीव रूप अनेक विक्ति हैं सो सर्वमें पाती हैं तिसको अनुगतसंग्रह कहते हैं, जैसे सचित् आनन्दमयी आत्मा, इसलिये सर्व जीव तथा सर्व प्रदेश सर्व गुण हैं सो जीवका चेतना लक्षण कहते हैं, इस लिये इसको अनुगत संग्रह कहा। , अब चौथा भेद कहते हैं कि जिसका वर्णन करे उसके व्यतिरेक सर्बसंगृह व्यतिरेकका सर्व संग्रह पने ज्ञान. होय, तिसका नाम ब्यतिरेक संग्रह है, जैसे जीव है तिस जीवसे व्यतिरेक (जुदा ) अजीव है। इस रीतिसे व्यतिरेक बचन अथषा उपयोगसे जीवका ग्रहण होता Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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