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________________ [ द्रव्यानुभव-रत्नाकर । ६८ ] नय पर्यार्थिक हैं । सो इन आचार्योंके कथन विशेष करके बड़े २ सिद्धान्तों में है सो मेरे पास कोई है नहीं, इसलिये यहां विशेष निर्णय न लिख सका, परन्तु किंचित् लिखता हूं कि श्री यसविजयजी उपाध्याय ने द्रव्य गुण पर्यायके रासमें आठमीं ढालकी तेरहवी गाथामें लिखा है, सो वहांसे दिखाते हैं । कल्पिताः 11 " द्रव्यार्थिक मते सर्वे पर्यायाः खलु सत्यं तेष्वन्वयि द्रव्यं कुडलादिषु हेमवत् ॥१॥ पर्यायार्थ मते द्रव्यं पर्याये भ्योस्तिनो पृथक् ॥ रथं क्रिया दृष्टा नित्यं कुत्रोपयुज्यते ॥२॥ व्याख्या - इति द्रव्यार्थ पर्यायार्थ नय लक्षणात् अतीत अनागत पर्याय प्रतिक्षेपी ऋजुसूत्रः शुद्धमर्थ पर्यायं मन्यमानः कथं द्रव्यार्थिकः स्यादित्ये तेषांमाशयः । ते आचार्यनेमते ऋजुसूत्रनय द्रव्यावश्यकने विषेलीन न संभवे । तथा “चउज्जुसु अस्सएगे अणु उवत्ते एगंदव्वावस्सयं पुहुत्तं नत्थि” इति अनुयोग द्वार सूत्र विरोधः वर्त्तमान पर्याया धारस्य द्रव्योशा पूर्वा पर परीणाम साधारण उर्ध्वता सामान्य द्रव्यांशसा द्वस्यास्तित्व रूप तिर्यक् सामान्य द्रव्याशाः । ” एम एके पर्याय न मानेतो ऋजु सुत्रने पर्यायार्थिक नय कहे तो ए सूत्र केममिले, ते माटे क्षणिक द्रव्यवादी सूक्ष्म ऋजुसूत्र तद्वर्त्तमान पर्यायापन द्रव्यादि स्थूल ऋजुसूत्र ते द्रव्य नय कहेवो, एम सिद्धान्त वादी कहै छैः । “अनुपयोग द्रव्याशामेव सूत्र परिभाषित मादा योक्त सूत्रतार्किकतंते नोपपादनीय मित्यस्मादेक परिशीलितः पंथा” ॥१६॥ इसरीतिका लेख. वहांसे देखो ॥ अब इनआचार्यों का मुख्य आशय कहते हैं कि बस्तुको अवस्था तीन प्रकारकी है। एक तो प्रवृती, दूसरा संकल्प और तीसरी परि णिति यह तीन भेद हैं, जिसमें जो योग व्यापार संकल्प चेतनाका योग सहित मनका बिकल्प fतसको श्रीजिनभद्रगणीक्षमःश्रमण प्रवृती धर्म कहते हैं, और संकल्पधर्मको उदयीक मिश्रपना कहते है, इसलिये Scanned by CamScanner -
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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