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________________ -द्रव्यानुभव-रत्नाकर । ] [ ८३ नय स्वरूप | अब एक, अनेक पक्षले किंचित् बिस्तार रूप जिज्ञासुको बोध करानेके वास्ते नयका स्वरूप कहते है, क्योंकि देखो द्रव्यमें अनेक धर्म हैं सो एक बचनसे कहने में आवे नहीं, इसलिये यथावत स्वरूप कहनेके वास्ते नयका स्वरूप और लक्षण और गणित आदि यथाक्रम दिखाते हैं । उपाध्यायजी श्री यशविजयजीका किया हुआ द्रव्य गुण पर्यायका रास उसमें कहा है कि-जीव, अजीव आदि पदार्थ त्रय रूप हैं, सो नय करके कहनेमें आवे, एक बचनसे कहा न जाय, सो पांचवे ढालकी पहली गाथा अर्थ समेत लिखकर दिखाते हैं। "एक अर्थ रूप छे देख्यो भले प्रमाणे, मुख्य व्रती उपचार थी नयवादि पण जाणेरे ॥ १ ॥ ज्ञान द्रष्टी जग देखिये ॥" अर्थ- हवे नय प्रमाण बिवेक करेछे, एक अर्थ जेघट पटादिक: जीव अजोवादिकते त्रयरूपके० दृव्य गुण पर्याय रूप छै, केमके घटादिक मृत्तिकादि रूपें दृष्य, अनेघटादि रूपें सजातीय द्रव्य, पर्याय रूप रसात्मक पर्णे गुण, एम जीवादिकमा जाणवो, एहवे प्रमाणे स्याद्वाद बचने देख्युं जे माटे प्रमाण सप्तभंगात्मके त्रयरूप पणों मुख्यरीतें जाणिये, केमके नयवादी जे एकांश वादी ते पण मुख्य वृत्ति अनेउपचारें एक अर्थने विषे त्रयरूप पणो जाणे, यद्यपि नय वादिने एकांश बचनेशक्ति "एक अर्थ कहिये, तो पिण लक्षण रूप उपचारे वीजा अर्थ पण जाणे, पण एकदा वृचिद्वय न होय एपणतंतन थी, जेम "गङ्गा या मत्स्य घोषौ,, इत्यादि स्थले एमबे बृत्ति पण मानीछे, इहां पण मुख्य अमुख्य प अनन्त धर्मात्मिक वस्तु जणाववाने प्रयोजने एक नय शब्दनी वृत्ति -मानतां बिरोधन थी; अथवा नयात्मक शास्त्रे क्रमिक वाक्पद्वयें पण ए Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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