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________________ ४ ग्रन्थकार की जीवनी । वहांसे कलकत्ते चला गया। दो चार महीने निठल्ला बैठे रहने के पश्चात् बंगाली लोगोंके 'हाउस' में रूई व सोरेकी दलाली करने लगा, और बंगाली लोगों की सोहबत पायकर जातिधर्म के सिवाय और धर्मका लेश भी नहीं रहा, कई तरहके आचरण ऐसे हो गये कि मैं वर्णन नहीं कर सकता, कारण कि कर्मों की विचित्र गति है। उन दिनोंमें ही मेरे हाथ एक शोरा रिफाइन करने की कल लगी थी, उसमें दलालीको रूपया जियादह पैदा होने लगा, जिसका यह प्रभाव हुआ कि बदकामों की तरफ दिल जियादा झुका, सिवाय नरकके कर्म बन्धनके और कुछ न था । एक दिन रविवार को गोठ करनेको बाहिर गया था, वहां खाना पीना और नशे आदिके पीछे नाच-रंग हो रहा था । उस समय मेरे शुभ कर्म का उदय हुआ, जिससे तत्काल मेरे मनमें वैराग्य उत्पन्न हुआ तो तुरन्त उस रंगमें भंग डाल अपने घर चला आया। दूसरे दिन प्रातःकाल जो कुछ माल असबाब था सो लुटा दिया। फिर जिस बंगाली का मैं काम करता था, उसके पास गया और कहा कि 'मुझसे अब तेरा काम नहीं होगा, मैंने संसारको छोड दीया, अब मैं साधु बनता हूं, हां, तूने मेरे भरोसे पर यह काम किया था, इस लिये एक दूसरा मातवर दलाल मेरे साथ है सो मैं उससे तुम्हारा सब प्रबन्ध (बन्दोबस्त ) करवा देता हूं। यह सुनकर वह बङ्गाली बहुत सुस्त और लाचार होने लगा। मैं उसको समझाय कर दूसरे दलाल के पास लेगया और उसका सब काम दुरुस्त करा दिया । फिर सम्बत् १६३३ की साल जेठके महीने में सायंकाल ( शामके ) समय कलकत्ते से रवाना हुआ। उस समय जो २ लोग मेरे साथ खानापीना, नशा आदिक करते थे, वे सब साथ हो गये । मेरा इरादा पैदल चलनेका था, पर उन लोगोंके जोर डालनेसे वर्दवानका टिकट लिया । उसी समय मैंने अपने घरवालोंको चिठ्ठी दि की 'मैं अब फकीर हो गया हूं। तुम्हारी जाति कुल सब छोड दिया और जैसा कहता था कर दिखलाया है।' जब में साधु हुआ तब एक लोटा जिसमें आध Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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