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________________ [ द्रव्यानुभव-रत्नाकर । <] वा ग्रंथोंकी पाया, इंग्यानुयोग को ऊट पटांग कथनी करगये हैं, ग्रंथोमे भ्रम जाल भर गये हैं, कितने ही बिचारोंको दुबदू (सन्मुख ) भी समझायकर त्याग पञ्चखानसे भ्रष्टकर गये हैं, सो ऊपर लिखित पुरुषों की सुहबतसे तुमको ऐसी शंका हुई कि प्रकरण विरुद्ध होगा, सो तुमने प्रश्न कर जताया और हमारे अभिप्रायको किंचित् भी न सोतेरा सन्देह दूर करनेके वास्ते किंचित् प्रयोजन कहते हैं कि हे भोले भाई हमारा अभिप्राय ऐसा है कि जिज्ञासुको थोड़े में यथावत ज्ञान होना मुशकिल जानकर विशेष समझानेके वास्ते इन आठ पक्षोंको सामान्य रूपसे कहा । और इनका विस्ताररूप दिखावेंगे, जब · जिज्ञासु इन बातों को समझ लेगातो उत्पाद, वय, ध्रुव, लक्षण द्रव्यकः यथाबत जान लेगा, इसलिये इस ग्रन्थमें प्रकरण बिरुद्ध दूषण नहीं आता । और इन आठ पक्षोंका किंचित् विस्तार करके इन पक्षोंमें जो लक्षण हमने कहा है उसको उतारकर दिखायेंगे, तब इस तुम्हारी प्रकरण विरूद्ध शंकाका लेश भीन रहेगा। 'पक्षोंका ही किंचित् बिस्तारसे वर्णन करते हैं । अब इन आठ नित्य अनित्य पक्ष । प्रथम नित्य, अनित्य पक्षसे चौभंगी उत्पन्न होती है, सो उस - चौभंगीका पेश्तर नाम लिखते हैं कि वे चारभांगा इस रीति से हैं । प्रथम भांगा अनादि अनन्त है, दूसरा भांगा अनादि सान्त है, तीसरा भांगा सादी सान्त है, चौथा भांगा सादी अनन्त है, इस रीतिले चारो भांगों का नाम कहा। अब इनका अर्थ कहते हैं, कि अनादि अनन्त उसको कहते हैं कि जिसकी आदि भी नहीं और 1 अन्त भी नहीं । और अनादि सान्त उसको कहते हैं कि जिसकी आदितो है नहीं, और अन्त है। सादी सान्त उसको कहते है कि जिसका अन्त भी है और आदि भी है, सादी अनन्त उसको कहते हैं, कि जिसकी आदि तो है और फिर अन्त नहीं। इस रीति से इन - चारो भांगोका नाम सांकेत और लौकिक मिला हुआ है । Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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