SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ १७. अथ मांसभक्षणदूषणाष्टकम् भक्षणीयं सता मांस, प्राण्यङ्गत्वेन हेतुना । ओदनादिवदित्येवं, कश्चिदाहऽतितार्किकः ॥ १ ॥ श्री अष्टक प्रकरण अर्थ - चावल के समान प्राणी का अंग होने से सज्जन पुरुषों के द्वारा मांस का भक्षण करना चाहिए, ऐसा अतितार्किक सौगत - बौद्धदर्शनानुयायी कहते हैं । भक्ष्याभक्ष्यव्यवस्थेह, शास्त्रलोकनिबन्धना । सर्वैव भावतो यस्मात्, तस्मादेतदसाम्प्रतम् ॥२॥ अर्थ क्या खाने लायक हैं और क्या खाने लायक नहीं हैं इत्यादि संपूर्ण व्यवस्था परमार्थ से आप्तोक्त-शास्त्र और शिष्ट लोक के आधार पर हैं। इससे मांस प्राणी का अंग हैं इसलिए भक्ष्य हैं, यह कहना अयुक्त हैं | ― तत्र प्राण्यङ्गमप्येकं, भक्ष्यमन्यत्तु नो तथा । सिद्धं गवादिसत्क्षीर - रुधिरादौ तथेक्षणात् ॥३॥ अर्थ गाय आदि प्राणी का अंग होने पर भी एक वस्तु - दूध आदि भक्ष्य हैं और दूसरी वस्तु खून आदि अभक्ष्य हैं, इस प्रकार शास्त्र और लोक में देखा जाता हैं । — प्राण्यङ्गत्वेन न च नोऽभक्षणीयमिदं गतम् । किन्त्वन्यजीवभावेन, तथा शास्त्रप्रसिद्धितः ॥४ ॥ अर्थ - हम (जैन) मांस को केवल प्राणी का अंग हैं
SR No.034153
Book TitleAshtak Prakaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages102
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy