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________________ अध्यात्मकल्पद्रुम ८९ येऽहः कषायकलिकर्मनिबन्धभाजनं, __ स्युः पुस्तकादिमिरपीहितधर्मसाधनैः । तेषां रसायनवरैरपि सर्पदामयै रार्तात्मनां गदहतेः सुखकृत्तु किं भवेत् ? ॥२६॥ अर्थ - "जिसके द्वारा धर्मसाधन की अभिलाषा हो ऐसी पुस्तकादि के द्वारा भी जो प्राणी पाप, कषाय, कंकास और कर्मबन्ध करते हैं तो फिर उनके सुख का क्या प्राप्ति साधन हो सकता है ? जिस प्राणी की व्याधि उत्तम प्रकार के रसायन प्रयोग से भी अधिक बढ़ने लगे तो फिर वह व्याधि किस साधन से मिट सकती है ?" रक्षार्थं खलु संयमस्य गदिता येऽर्था यतिनां जिनैर्वासः पुस्तकपात्रकप्रभृतयो धर्मोपकृत्यात्मकाः।। मूर्धन्मोहवशात्त एव कुधियां संसारपाताय धिक्, स्वं स्वस्यैव वधाय शस्त्रमधियां यदुष्प्रयुक्तं भवेत् ॥२७॥ अर्थ - "वस्त्र, पुस्तक और पात्र आदि धर्मोपकरण के पदार्थ श्रीतीर्थंकर भगवान ने संयम की रक्षा के निमित्त यतियों को बताये हैं परन्तु जो मन्दबुद्धि मूढ़ जीव अधिक मोह के वशीभूत होकर उनको संसारवृद्धि के कारण बनाते
SR No.034152
Book TitleAdhyatma Kalpadruma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunisundarsuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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