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________________ अध्यात्मकल्पद्रुम अर्थ - " (आत्मव्यतिरिक्त) अन्य प्राणियों का हित विचारना यह मैत्री भावना, दूसरों के दुःखों को नाश करने की इच्छा अथवा चिंता से करुणा भावना, दूसरे के सुख को देखकर आनन्द मानना यह प्रमोद भावना और दूसरों के दोषों की उपेक्षा करना यह उपेक्षा भावना ।" , मा कार्षीत्कोऽपि पापानि मा च भूत्कोऽपि दुःखितः । मच्यतां जगदप्येषा, मतिर्मैत्री निगद्यते ॥१३॥ अर्थ - "कोई भी प्राणी पाप न करो, कोई भी जीव दुःखी न हो, इस जगत कर्म से बचो - ऐसी बुद्धि को मैत्री कहते हैं । " अपास्ताशेषदोषाणां वस्तुतत्त्वावलोकिनाम् । > गुणेषु पक्षपातो यः, स प्रमोदः प्रकीर्तितः ॥ १४॥ अर्थ - "जिन्होंने सर्व दोषों को दूर कर दिया है और जो वस्तुतत्त्व को देख रहे हैं उनके गुणों पर पक्षपात रखना वह प्रमोद भावना कहलाती है ।" दीनेष्वार्त्तेषु भीतेषु, याचमानेषु जीवितम् । प्रतिकारपरा बुद्धिः, कारुण्यमभिधीयते ॥१५॥ अर्थ - " अशक्त, दुःखी, भय से व्याकुल और जीवन याचना करनेवाले प्राणियों के दुःख दूर करने की जो बुद्धि है वह करुणाभावना कहलाती है । " क्रूरकर्मसु निःशंकं, देवतागुरुनिंदिषु । आत्मशंसिषु योपेक्षा, तन्माध्यस्थ्यमुदीरितम् ॥१६॥ अर्थ - "नि:शंक होकर क्रूर कर्म करनेवाले, देव और गुरु की
SR No.034152
Book TitleAdhyatma Kalpadruma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunisundarsuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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