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________________ अध्यात्मकल्पद्रुम ५१ करता है कि यह जीव मुझे छोड़कर मोक्ष में चला जाएगा (अतः मुझे पकड़कर रखता है) ? परंतु क्या तेरे रहने के लिये दूसरे असंख्य स्थान नहीं हैं ?" पूतिश्रुतिः श्वेव रतेर्विदूरे, कुष्ठीव संपत्सुदृशामनर्हः । श्वपाकवत्सद्गतिमन्दिरेषु, नार्हेत्प्रवेशं कुमनो हतोऽङ्गी ॥११॥ अर्थ - "जिस प्राणी का मन खराब स्थिति में होने से संताप उठाया करता है, वह प्राणी कृमि से भरपूर कानवाले कुत्ते के समान आनन्द से बहुत दूर रहता है, कोढ़ी के समान लक्ष्मी सुन्दरी को वरने में अयोग्य हो जाता है और चाण्डाल के समान शुभगति मन्दिर में प्रवेश करने योग्य नहीं रहता है ।" तपोजपाद्याः स्वफलाय धर्मा, न दुर्विकल्पैर्हत चेतसः स्युः । तत्खाद्यपेयैः सुभृतेऽपि गेहे, क्षुधातृषाभ्यां म्रियते स्वदोषात् ॥१२॥ अर्थ - "जिस प्राणी का चित्त दुर्विकल्पों से छिन्नभिन्न किया हुआ है उसको तप - जप आदि धर्म (आत्मिक) फल देनेवाले नहीं है, इस प्रकार का प्राणी खानपान से भरे हुए घर में भी अपने ही स्वजन्य दोषों से क्षुधा तथा तृषावश मृत्यु का शिकार बनता है ।"
SR No.034152
Book TitleAdhyatma Kalpadruma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunisundarsuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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