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________________ ११५ अध्यात्मकल्पद्रुम शास्त्रसमुद्रों में से उद्धृत किया गया है । हे पंडितो ! तुम इस रस का पान करो और मोक्ष सुख की वानगी यहीं पर चखो।" शान्तरसभावनात्मा, मुनिसुन्दरसूरिभिः कृतो ग्रन्थः । ब्रह्मस्पृहया ध्येयः, स्वपरहितोऽध्यात्मकल्पतरुरेषः ॥७॥ अर्थ - "शान्तरस भावना से भरपूर अध्यात्म ज्ञान के कल्पवृक्ष (अध्यात्मकल्पद्रुम) ग्रन्थ की श्रीमुनिसुन्दरसूरि ने अपने और पराये के हित के लिये रचना की है इसका ब्रह्म (ज्ञान और क्रिया) प्राप्त करने की इच्छा से अध्ययन कर।" इममिति मतिमानधीत्यचित्ते, रमयति यो विरमत्ययं भवाद् द्राक् । स च नियतमतो रमेत चास्मिन्, सह भववैरिजयश्रिया शिवश्रीः ॥८ ॥ अर्थ - "जो बुद्धिमान् पुरुष इस ग्रन्थ का अध्ययन कर इसको चित्त में रमण कराते हैं वे अल्पकाल में ही संसार से विरक्त हो जाते हैं और संसाररुप शत्रु के जय की लक्ष्मी के साथ मोक्षलक्ष्मी की क्रीड़ा अवश्य करते हैं । "
SR No.034152
Book TitleAdhyatma Kalpadruma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunisundarsuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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