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________________ अध्यात्मकल्पद्रुम १०१ बार को छोड़ा, तत्त्व प्रतिपादन करनेवाले ग्रन्थों का अभ्यास किया और निर्वाह आदि चिन्ताओं का भार हट गया, फिर भी परभव के हित के लिये यत्न क्यों नहीं करता है?" विराधितैः संयमसर्वयोगैः, पतिष्यतस्ते भवदुःखराशौ । शास्त्राणि शिष्योपधिपुस्तकाद्या, भक्ताश्च लोकाः शरणाय नालम् ॥५५॥ अर्थ – “संयम के सर्व योगों की विराधना करने से तू भव दुःख के ढेर में पड़ेगा तब शास्त्र, शिष्य, उपधि, पुस्तक और भक्त लोग आदि कोई भी तुझे शरण देने में समर्थ न होंगे।" यस्य क्षणोऽपि सुरधामसुखानि पल्य कोटीनॄणां द्विनवतीं ह्यधिकां ददाति । किं हारयस्यधम ! संयमजीवितं तत्, हा हा प्रमत्त ! पुनरस्य कुतस्तवाप्तिः ? ॥५६॥ अर्थ - "जिस (संयम) का एक क्षण (मुहूर्त) भी बानवे क्रोड़ पल्योपम से अधिक समय तक देवलोक के सुख को देता है, ऐसे संयम जीवन को हे अधम ! तू क्यों हार जाता है ? हे प्रमादी ! तुझे फिर से इस संयम की प्राप्ति कैसे होगी ?"
SR No.034152
Book TitleAdhyatma Kalpadruma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunisundarsuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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