SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० वैराग्यशतक इन्द्रिय पराजय शतक सुच्चिय सूरो सो चेव, पंडिओ तं पसंसिमो निच्चं । इंदियचोरेहिं सया, न लुंटिअं जस्स चरणधणं ॥१॥ अर्थ : वही सच्चा शूरवीर है, वही सच्चा पंडित है और उसी की हम नित्य प्रशंसा करते हैं, जिसका चारित्र रूपी धन इन्द्रिय रूपी चोरों के द्वारा नहीं लूटा गया है ॥१॥ इंदियचवल तुरंगो, दुग्गइमग्गाणु धाविरे निच्चं । भाविअभवस्सरूवो, रुंभइ जिणवयणरस्सीहिं ॥ २ ॥ अर्थ : इन्द्रिय रूपी चपल घोड़े हमेशा दुर्गति के मार्ग पर दौड़ने वाले हैं । जिसने संसार के स्वरूप का चिंतन किया है, वह जिनवचन रूपी लगाम के द्वारा इन इन्द्रियों को रोकता है ||२|| इंदियधुत्ताणमहो, तिलतुसमित्तंपि देसु मा पसरं । जड़ दिन्नो तो नीओ, जत्थ खणो वरिसकोडिसमो ॥३॥ अर्थ : हे जीव ! इन्द्रिय रूपी धूर्तों को तुम लेश मात्र भी प्रश्रय मत देना, यदि दिया तो करोड़ों वर्षों का दुःख तेरे सिर पर आ गया, ऐसा समझना ||३|| अजिइंदिएहि चरणं कट्टं व घूणेहि कीर असारं । तो धम्मत्थीहि दढं, जयव्वं इंदियजयंमि ॥४॥ अर्थ : जिस प्रकार दीमक अंदर से कुतरकर लकड़ी
SR No.034151
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorPurvacharya Maharshi
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages58
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy