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________________ २२ प्रशमरति वाले को (६) लोकपरमार्थ के ज्ञाता को (७) अठ्ठारह हजार शीलांग के धारक एवं उसका पालन करने की जिन्होंने प्रतिज्ञा ली है उनको ॥६१॥ परिणाममपूर्वमुपागतस्य शुभभावनाऽध्यवसितस्य । अन्योऽन्यमुत्तरोत्तरविशेषमभिपश्यतः समये ॥६२॥ अर्थ : (८) अपूर्व परिणाम (मन के) प्राप्त करने वालों को, (९) शुभ भावनाओं (अनित्यादि एवं पाँच महाव्रतों वगैरह की) के अध्यवसाय वालों को, (१०) सिद्धान्त में परस्पर एक दूसरे से विशेष (श्रेष्ठ) के भावज्ञान से देखने वालों को ॥६२॥ वैराग्यमार्गसम्प्रस्थितस्य संसारवासचकितस्य । स्वहितार्थाभिरतमतेः शुभेयमुत्पद्यते चिन्ता ॥६३॥ ___ अर्थ : (११) वैराग्य मार्ग में रहे हुए को, (१२) संसारवास से त्रस्त बने हुए को (१३) स्वहितार्थ मुक्तिसुख में जिनकी बुद्धि अभिरत है उनको-यह शुभ चिन्ता पैदा होती है ॥६३॥ भवकोटीभिरसुलभं मानुष्यं प्राप्य कः प्रमादो मे ?। न च गतमायुर्भूयः प्रत्येत्यपि देवराजस्य ॥६४॥ ___अर्थ : करोड़ों (अनंत) जन्मों से (नरक, देव, तिर्यंचादिरूप) भी दुर्लभ मनुष्यभव पाकर यह मेरा कैसा
SR No.034150
Book TitlePrashamrati
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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