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________________ प्रशमरति मन-वचन-काया से अभ्यास-प्रयत्न करना चाहिए ॥१६।। माध्यस्थ्यं वैराग्यं विरागता शान्तिरुपशमः प्रशमः । दोषक्षयः कषायविजयश्च वैराग्यपर्यायाः ॥१७॥ अर्थ : [१] माध्यस्थ [२] वैराग्य [३] विरागता [४] शान्ति [५] उपशम [६] प्रशम [७] दोषक्षय [८] कषायविजय ये सब वैराग्य के पर्याय हैं ॥१७॥ इच्छा मूर्छा कामः स्नेहो गार्थ्यं ममत्वमभिनन्दः । अभिलाष इत्यनेकानि रागपर्यायवचनानि ॥१८॥ अर्थ : इच्छा, मूर्छा, काम, स्नेह, गृद्धता, ममत्व, अभिनन्द (परितोष) एवं अभिलाष ये राग के अनेक पर्याय हैं ॥१८॥ ईर्ष्या रोषो दोषो द्वेषः परिवादमत्सरासूयाः। वैर-प्रचण्डनाद्यानके द्वेषस्य पर्यायाः ॥१९॥ ___ अर्थ : (१) ईर्ष्या (२) रोष (३) दोष (४) द्वेष (५) परिवाद (६) मत्सर (७) असूया (८) वैर (९) प्रचंडन आदि द्वेष के अनेक पर्याय हैं ॥१९॥ रागद्वेषपरिगतो मिथ्यात्वोपहतकलुषया दृष्ट्या । पञ्चास्त्रवमलबहुलाऽर्त्तरौद्रतीव्राभिसन्धानः ॥२०॥ अर्थ : (१) रागद्वेष के परिणाम से युक्त (२) मिथ्यात्व से कलुषित बुद्धि के द्वारा प्राणतिपातादिक पाँच आश्रवों के
SR No.034150
Book TitlePrashamrati
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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