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________________ (स्रग्धरा छन्दः) दुर्ध्यानप्रेतपीडा प्रभवति न मनाक्काचिदद्वन्द्वसौख्यस्फातिः प्रीणाति चित्तं प्रसरति परितः सौख्यसौहित्यासिन्धुः । क्षीयन्ते रागरोषप्रभृतिरिपुभटाः, सिद्धिसामज्यलक्ष्मीः स्याद्वश्या यन्महिम्ना विनयशुचिधियो भावनास्ता श्रयध्वम् ।२। अर्थ :- जिस भावना के प्रभाव से दुर्ध्यान की पीडा से मुक्त हो जाते हो । इसके प्रभाव से अनिर्वचनीय सुख की वृद्धि होती है, और चित्त को प्रसन्न करता है। सब दिशा में तृप्ति का सागर लहराता है। और इसके प्रभाव से राग, द्वेष नष्ट हो जाते है और आत्मऋद्धि सहज ही प्राप्त होती है। विनय से नीर्मल बुद्धियुक्त बनकर इस भावनाओं का स्मरण करे । ॥२॥ (पथ्या छन्दः) श्रीहीरविजयसूरीश्वरशिष्यौ सोदरावभूतां द्वौ । श्रीसोमविजयवाचक वाचकवरकीर्तिविजयाख्यौ ॥३॥ ___ अर्थ :- श्री हीरविजयसूरीजीके दो शिष्य जो सगे भाइ थे श्री सोमविजयजी वाचक और वाचकवार कीर्तिविजयजी ॥३॥ (गीति छन्दः) तत्र च कीर्तिविजयवाचकशिष्योपाध्यायविनयविजयेन । शान्तसुधारसनामा संदृष्टो भावनाप्रबन्धोऽयम् ॥४॥ शांत-सुधारस ९२
SR No.034149
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages96
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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