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________________ प्रकल्पयन् नास्तिकतादिवाद - मेवं प्रमादं परिशीलयन्तः । मग्ना निगोदादिषु दोषदग्धा, दुरन्त- दुःखानि हहा सहन्ते ॥ २०६ ॥ उपजाति अर्थ :- नास्तिकता आदि कुवादों की कल्पना करके निर्विवेक जीव इस प्रकार के प्रमाद का विशेष आचरण करने वाले स्वदोष से दग्ध बने निगोद आदि दुर्गति में गिरकर निरवधि असंख्यकाल तक दुरन्त दुःखों को सहन करते हैं ||२०६ || शृण्वन्ति ये नैव हितोपदेशं, न धर्मलेशं मनसा स्पृशन्ति । रुजः कथंकारमथापनेया- स्तेषामुपायस्त्वयमेक एव ॥२०७॥ अर्थ :- जो हितोपदेश को सुनने के लिए तैयार ही नहीं हैं और लेश मात्र भी धर्म को मन में स्थान नहीं देते हैं, उनके दुर्गति आदि भाव-रोगों को कैसे दूर करें ? अतः उन जीवों के प्रति करुणा रखना, यही एक उपाय है ॥२०७॥ परदुःखप्रतिकार - मेवं ध्यायन्ति ये हृदि । लभन्ते निर्विकारं ते, सुखमायतिसुन्दरम् ॥ २०८ ॥ अनुष्टुप् अर्थ :- इस प्रकार जो अन्य के दुःखों को दूर करने का चिन्तन करते हैं, वे सुन्दर परिणाम वाले निर्विकारी सुख को पाते हैं ॥२०८॥ शांत-सुधारस ८२
SR No.034149
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages96
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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