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________________ क्वचिदुत्सवमयमुज्ज्वलं, जयमङ्गलनादम् । क्वचिदमन्द हाहारवं, पृथुशोक-विषादम् ॥विनय० ॥ १५३ ॥ अर्थ :- कहीं जय-जयकार के मंगल नाद से व्याप्त उत्सवमय उज्ज्वलता है तो कहीं भयंकर शोक और विषादयुक्त हाहाकारमय वातावरण है || १५३ || बहुपरिचितमनन्तशो, निखिलैरपि सत्त्वैः । जन्ममरणपरिवर्तिभिः, कृतमुक्तममत्वैः ॥ विनयः ॥ १५४ ॥ अर्थ :- जन्म-मरण के चक्र में अनन्त बार भ्रमण करने वाले ममता से युक्त जीवों के द्वारा यह (लोक) अत्यन्त परिचित है ॥१५४॥ इह पर्यटनपराङ्मुखाः, प्रणमत भगवन्तम् । शान्तसुधारसपानतो, धृतविनयमवन्तम् ॥ विनयः ॥ १५५ ॥ अर्थ :- इस लोकाकाश में पर्यटन करने से श्रान्त बनी हे भव्यात्माओ ! आप विनय से युक्त बनकर शान्त सुधारस का पानकर शरणदाता प्रभु को प्रणाम करो ॥ १५५॥ शांत-सुधारस ६१
SR No.034149
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages96
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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